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जब उस पर बहुत जोर डाला गया, तो उसने एक वक्तव्य में कहा कि अगर जीसस का हम जीवन देखें और फिर बाइबिल पढ़ें, तो बाइबिल कोई पढ़ेगा ही नहीं। पहले अगर जीवन देखें! तो जीसस का जीवन क्या है? एक घुड़साल में वह पैदा हुए। गांव भर में कहीं जगह न मिली जीसस की मां को, पिता को, तो एक जहां घोड़े बंधते थे, उस घुड़साल में वह पैदा हुए।
कथाएं कहती हैं कि वह कुंआरी मरियम से पैदा हुए। यह संदिग्ध बात है, क्योंकि कंआरी स्त्री से कोई पैदा हो सकता है? तो सादेह कहता है कि साफ बात तो यह है कि जीसस के पिता के बाबत संदेह है कि कौन पिता था। किस स्कूल में पढ़े, इसका कुछ पता नहीं है। पढ़े, इसका भी पता नहीं है। शराबियों, वेश्याओं के घरों में ठहरते रहे, इसका पता है। निम्न वर्ग के लोगों से दोस्ती बांधी, इसका पता है। उनके घरों में रुकते थे, मेहमान बनते थे, जिनके घरों में कोई सज्जन आदमी कदम न रख सके।
तैंतीस साल की उम्र में सूली पर चढ़ाए गए। जिस दिन सूली पर चढ़ाए गए, उस दिन दो चोरों के बीच में सूली लगाई गई। तीन लोगों को सूली दी गई, दो तरफ चोर थे, बीच में जीसस थे। जिन लोगों ने सूली लगाई, उन लोगों ने यह समझ कर कि या तो यह आदमी पागल है,या शरारती है.सली लगाई।
जिसके बाप का पता नहीं, जिसकी शिक्षा का कोई हिसाब नहीं, जिसके खून का कुछ पक्का नहीं कि वह किस कुलीन घर से आता है कि नहीं आता, घुड़साल में जो पैदा हुआ हो, वेश्याओं के घर में टिका हो, शराबखोरों के बीच में रहा हो, जुआरियों के घर में रात सोता हो, और तैंतीस साल की उम्र में जिस आदमी को दो चोरों के बीच में फांसी की सजा लगा दी जाए, क्या इसका यह जीवन जान कर कोई बाइबिल पढ़ने को राजी होगा? और यह जीवन जान कर क्या बाइबिल पढ़ने जैसी लगेगी?
नहीं लगेगी। वह तो हम पहले उलटा करते हैं। पहले बाइबिल पढ़ लेते हैं; तो फिर इस जीवन में दिक्कत नहीं मालूम पड़ती। अगर इसको ही पढ़ कर-यह इंट्रोडक्शन में लिखा हो और फिर किसी से कहा जाए अब पढ़ो, आगे इस महापुरुष के वचन संगृहीत हैं, फिर कोई नहीं पड़ेगा।
तो सादेह ने कहा कि मेरे जीवन को छोड़ो। इससे क्या फर्क पड़ता है कि सादेह सिगरेट पीता है कि नहीं पीता, कि सादेह शराब पीता है कि नहीं पीता। और जो सादेह कहता है, अगर वह सच है, तो सादेह की सिगरेट पीना उसके सच को झूठ न कर पाएगी। और सादेह जो कहता है, वह अगर झूठ है, तो वह अगर सिर्फ शुद्ध पानी ही पीता हो और कुछ न पीता हो, तो भी वह सच न हो पाएगा। तो उसने कहा, मुझे छोड़ो। मेरे बीच में आने की कोई जरूरत नहीं है। जो कहा है, उसे सीधा देख लो।
यह शायद स्वयं को हटाने की प्रक्रिया है। यह शायद लगा कर यह आदमी यह कह रहा है कि मुझे अब छोड़ा जा सकता है। मैं कोई आग्रह नहीं करता, इसलिए विवाद में मैं नहीं हूं। यह सीधा सत्य रख देता हूं सामने, मैं हट जाता हूं। जब मैं कहता हूं, यही सत्य है, तो मैं विवाद में खड़ा रहूंगा। क्योंकि अगर किसी ने कहा नहीं है, तो यह जिम्मा मुझ पर होगा कि मैं सिद्ध करूं कि है। मैं कहता हूं, शायद यह सत्य है। मैं विवाद से बाहर हो गया। अब यह सत्य अकेला रहेगा। यह अगर राजी कर ले, तो काफी है। और अगर न राजी कर पाए, अगर सत्य ही राजी न कर पाए, तो फिर और कौन राजी कर पाएगा?
इसलिए लाओत्से जैसे लोग शायद से उस सत्य को कहते हैं जो उनके लिए पूरी तरह है, जिसके लिए वे पूरी तरह आश्वस्त हैं। यह बड़ी उलटी बात है। झूठ बोलने वाले शायद से कभी शुरू नहीं करते; सत्य बोलने वाले अक्सर शायद से शुरू करते हैं। झूठ बोलने वाले बहुत आग्रहपूर्ण होते हैं; सत्य बोलने वाले का कोई आग्रह नहीं होता।
जीसस सूली पर लटकाए जा रहे हैं। तब पाइलट ने, जिसने उन्हें सूली की सजा दी, उसने उनसे पूछा है कि मरने के पहले युवक, एक बात मुझे बता दो: व्हाट इज़ टुथ? यह सत्य क्या है, जिसके लिए तुम परेशान हुए और जिसके लिए लोग तुम्हें सूली दे रहे हैं? जीसस ने कोई जवाब नहीं दिया; चुप रह गए। पाइलट ने दुबारा पूछा। जीसस ने आंखें उठा कर देखा, लेकिन कोई जवाब नहीं दिया। दो हजार साल हो गए। दो हजार साल में नहीं तो दो हजार लोगों ने सवाल उठाया होगा कि जीसस को अगर पता था, तो पाइलट को कहना चाहिए था। या कि जीसस को पता नहीं था? पाइलट ने क्या सोचा होगा, इस युवक को पता है?
नहीं सोचा होगा। क्योंकि एक कथा है-प्रमाणित तो नहीं, लेकिन प्रचलित है-एक कथा है कि तीस साल बाद जब पाइलट रिटायर हो गया, क्योंकि पाइलट गवर्नर था, रोमन गवर्नर था। उन दिनों जीसस जिस इलाके में पैदा हुए, वह रोमन साम्राज्य में था। पाइलट तो वाइसराय था। तीस साल बाद जब वह सब काम से मुक्त हो गया, रिटायर हो गया, तीस साल बाद बूढ़े पाइलट से किसी ने पूछा कि तुम्हें खयाल है कि तीस साल पहले तुमने एक आदमी को सूली की सजा दी थी, जीसस नाम के युवक को? पाइलट ने सिर पे हाथ लगाया और उसने कहा कि कुछ याद नहीं पड़ता, क्योंकि हजारों लोगों को सजाएं दी हैं। कौन था यह जीसस? यह कौन आदमी था?
जिस जीसस के नाम के पीछे किसी दिन आधी दुनिया पागल हो गई, उसको सूली देने वाला तीस साल बाद भूल गया था। उसको पता भी नहीं था कि यह कौन आदमी था। तो यह समझना आसान है कि पाइलट ने समझा होगा, इसको क्या पता, कुछ पता नहीं है। छोकरा है, दिमाग खराब हो गया, फिजूल की बातें कहता रहा, मुश्किल में पड़ गया। दया-भाव से देखा होगा।
लेकिन जीसस का कोई जवाब न देना बड़ा विचारणीय है।
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