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लाओत्से कहता है, घड़ा कितना ही भरा हो, अथाह नहीं होगा; खाली घड़ा अथाह है। खाली घड़ा अथाह है, क्योंकि जो शून्य है, उसको नापने का उपाय नहीं है। उसके नापने की कोई मेजरमेंट की विधि, व्यवस्था, तराजू, कोई नाप, कोई गज, कुछ भी नहीं है। एक छोटे से शुन्य को भी नहीं नापा जा सकता, और एक बड़े विराट जगत को भी नापा जा सकता है।
हिंदू दर्शन के पास एक शब्द है, माया। माया का मतलब होता है, जो मापा जा सकता है, दैट व्हिच इज़ मेजरेबल। माया का मतलब इल्यूजन नहीं होता, माया का मतलब भ्रम नहीं होता। माया का मतलब होता है, जो मापा जा सकता है, जो मेय है, मेजरेबल है। जो मेय है, वह माया है। और चूंकि नापा जा सकता है, इसलिए इल्यूजन है। माया का अर्थ नहीं होता भ्रम। जो नापा जा सकता है, वह सत्य नहीं है। क्योंकि सत्य अमाप है, वह इम्मेजरेबल है, वह अमेय है। उसको हम माप न सकेंगे।
लाओत्से कहता है, "कितना अथाह!'
अब इसे भी थोड़ा सोचने जैसा है। क्योंकि लाओत्से जैसे व्यक्ति रत्ती भर शब्द भी व्यर्थ नहीं बोलते हैं; इंच भर भी वाणी अकारण नहीं होती है। क्योंकि बड़ी मुश्किल से बोलते हैं। बोलना कोई लाओत्से जैसे व्यक्ति के लिए कोई सुख नहीं है। बड़ी पीड़ा है, बड़ी कठिनाई है। क्योंकि जो कहने चलते हैं वे, वह कहने के बिलकुल बाहर है। उसमें एक भी शब्द वे ऐसा उपयोग नहीं करते।
अब इसमें बड़ा मजेदार है। लाओत्से कहता है, कितना अथाह! कितना नहीं कहना चाहिए। कितना नहीं कहना चाहिए, क्योंकि कितने में माप शुरू हो जाता है। कितना शब्द माप की सूचना देने लगता है-कितना अथाह! फिर लाओत्से क्यों कितने का उपयोग करता होगा? अगर लाओत्से इतना कहे कि अथाह, तो तर्कयुक्त मालूम पड़ेगा। लेकिन कहता है, कितना अथाह! कितने में तो माप की शुरुआत हो जाती है।
पर लाओत्से एक शब्द अकारण नहीं बोलता। फिर से सोच लें। अगर लाओत्से कहे अथाह, तो माप हो गया। अगर लाओत्से कहे अथाह, दिस वर्ल्ड इज़ इम्मेजरेबल। तो कोई भी कह सकता है, यू हैव मेजर्ड।
अगर मैं यह कहूं कि अथाह है यह जगत, तो इसका मतलब हुआ कि मैंने तो कम से कम नाप-जोख कर ली; मैं तो कोने तक पहुंच गया; मैंने तो पूरा देख डाला, और लौट कर कहा, अथाह है। मैं जल में गया और मैंने लौट कर कहा, अथाह है। दो ही बातें हो सकती हैं। या तो मैं यह कहूं कि मैं थाह तक नहीं पहुंच पाया। तो मुझे अथाह कहने का हक नहीं है। मुझे इतना ही कहना चाहिए कि मैं थाह तक नहीं पहुंच पाया। क्योंकि हो सकता है, जहां तक मैं गया, उसके एक हाथ नीचे ही थाह हो। नदी के बाहर आकर मैं कहता हूं, अथाह। तो दो ही बातें हो सकती हैं। या तो मैं पहुंच नहीं पाया थाह तक। तब मुझे अथाह कहना नहीं चाहिए। मुझे इतना ही कहना चाहिए कि जहां तक मैं गया, वहां तक थाह न थी, बस। आगे हो सकती है। आगे का मैं कुछ कह नहीं सकता। और या इसका यह मतलब हुआ कि मैं आखिर तक पहुंच गया और मैंने पाया कि अथाह है। लेकिन यह एब्सई है। अगर मैं आखिर तक पहुंच गया, तो मैं थाह तक पहुंच गया। और लौट कर अगर मैं कहता हूं कि मैं बिलकुल आखिर तक देख कर आ रहा हूं, थाह नहीं है, यह तो बिलकुल गलत बात है। क्योंकि आखिर तक तुमने देखा कैसे अगर थाह नहीं है? अगर तुम पहुंच गए आखिर तक, तो थाह है।
इसलिए लाओत्से कहता है, कितना अथाह! अथाह को भी सीधा नहीं देता है वक्तव्य। क्योंकि सीधे देने में तो लगेगा, नापा जा चुका। कम से कम लाओत्से ने तो नापा। कम से कम लाओत्से को तो पता चल गया कि अथाह है। लेकिन लाओत्से कहता है, कितना अथाह! इसमें लाओत्से इतना ही कहता है, कितना ही नापो, कितना ही नापो, नापते ही चले जाओ-कितना अथाह! तुम नापते हो, और नाप के बाहर। तुम नापते हो, और नाप के बाहर। तुम जहां तक पहुंचते हो, वहीं से आगे। तुम जहां तक पहुंच जाते हो, वहीं किनारा नहीं। जहां तक पहुंच जाते हो, वहीं थाह नहीं मिलती। अनंत-अनंत तरह से तुम जाकर देखते हो और पाते हो, कितना अथाह! अथाह को भी सीधा नहीं कह देता। सीधा कहने में तो बात नापी हुई हो जाएगी।
इस कारण बहुत से वक्तव्य कंट्राडिक्टरी टर्स में दिए जाते हैं, विरोधी टर्स में दिए जाते हैं। अथाह सीधा कह देने से थाह वाला शब्द हो जाता है; नापा-जोखा हो जाता है। कितना अथाह! और तब अथाह में भी लेयर्स हो जाती हैं। तब अथाह में भी मल्टी डायमेंशंस हो जाते हैं, बहुआयाम हो जाते हैं। अकेला अथाह कहने से वन डायमेंशनल शब्द है। कितना अथाह कहने से मल्टी डायमेंशनल हो गया।
महावीर से तुलना में खयाल में आ सकेगा।
महावीर जब भी बोलते हैं, तब वे सिर्फ अनंत नहीं कहते सत्य को। वे कहते हैं अनंतानंत। जब भी वे कहते हैं, सत्य कैसा, तो वे यह नहीं कहते कि अनंत, इनफिनिट। वे कहते हैं, इनफिनिटली इनफिनिट, अनंत-अनंत। कोई उनसे पूछने लगा कि यह क्या बात है? अनंत कहने से काम चल जाएगा। दो-दो अनंत जोड़ने से क्या मतलब?
और गलत भी है दो-दो अनंत जोड़ना, क्योंकि अनंत तो एक ही हो सकता है। अगर दो अनंत होंगे, तो एक-दूसरे की सीमा बना देंगे। अगर इस जगत में हम कहें कि दो अनंत हैं, तो दोनों ही अनंत न रह जाएंगे; दोनों सांत हो जाएंगे। क्योंकि दो एक-दूसरे की सीमा...| अनंत का तो मतलब यह है कि जिसका कोई अंत नहीं। लेकिन जहां से दूसरा शुरू होगा, वहां से पहले का अंत हो जाएगा। अनंत तो एक ही हो सकता है।
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