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________________ Download More Osho Books in Hindi Download Hindi PDF Books For Free तो आप इस कमरे को कितना ही भर दें, ठोस सीमेंट से बंद कर दें पूरा का पूरा, तो भी खाली जगह यहीं की यहीं होगी। न नष्ट हो सकती है, न बाहर जा सकती है। तो क्या फिर हमें खाली जगह किसी दिन इस कमरे में लानी हो-रहने का मन हो जाए, इस कमरे में बसना हो, बैठना हो, सोना हो-तो हम क्या करेंगे, खाली जगह कहीं बाहर से लाएंगे? खाली जगह पैदा करने के लिए कुछ मैन्युफैक्चर करेंगे? खाली जगह को पैदा करने के लिए कोई कारखाना बनाएंगे? नहीं, सिर्फ इस कमरे में जो चीज भरी है, उसे बाहर कर देंगे। खाली जगह अपनी जगह ही रहेगी। चीज खाली जगह को सिर्फ छिपा देती है। आप हटा देंगे वस्तुओं को, खाली जगह प्रकट हो जाएगी। हम भी ऐसे ही हैं। खालीपन हमारा स्वभाव है। वह हमारा धर्म है। वह ताओ है। हम उसमें भरते जाते हैं चीजें। इतना भर लेते हैं कि वह खाली जगह दब जाती है। दब जाती है, ऐसा कहना पड़ता है। दबा तो हम उसको नहीं सकते। लेकिन अप्रकट हो जाती है, दिखाई नहीं पड़ती, अदृश्य हो जाती है। क्या करें अब? लाओत्से कहता है, यह पूरे होने की जो आकांक्षा है, इससे सावधान रहना। और पूरे होने की आकांक्षा छोड़ देना। तो पूरे होने के लिए जो इंतजाम तुमने घर में कर रखा है, वह तुम खुद ही उठा कर फेंक दोगे। वह तो इंतजाम है सिर्फ पूरे होने का। और जिस दिन उसे उठा कर फेंक दोगे और भीतर रिक्तता उपलब्ध होगी, उसी दिन ताओ में स्थिति हो जाती है। और ताओ बड़ा सक्रिय है, बहुत डायनैमिक फोर्स है शून्य। और उस शून्य का बड़ा उपयोग है। असल में, उपयोग ही शून्य का होता है। उपयोग का अर्थ है कि जैसे ही कोई व्यक्ति शून्य हो जाता। जो अधूरापन था, उसने फेंक दिया। पूर्ण होने की कोशिश न की, क्योंकि पूर्ण होने की कोशिश में चीजें बढ़ानी पड़ती थीं। उसने चीजें उठा कर फेंक दीं। उसने पूर्ण होने का, मकान बनाने का खयाल ही छोड़ दिया। अब जब वह अपूर्ण नहीं रहा, तो उसे क्या कहिएगा? अपूर्णता का सब इंतजाम उसने उठा कर फेंक दिया, अब वह अपूर्ण नहीं रहा। अब उसे क्या कहिएगा? शून्य तो हम सिर्फ इसलिए कहते हैं ताकि दृष्टि शून्य होने की तरफ लग जाए। जिस दिन कोई व्यक्ति अपने भीतर से सब साजसामान फेंक देता है, पूर्ण होने की सब योजनाएं, प्लानिंग फेंक देता है, सब इंतजाम छोड़ देता है, खाली हो जाता है, उस दिन पूर्ण हो जाता है। अपूर्णता से मुक्त हो जाना पूर्ण हो जाना है। यह अलग परिभाषा हुई। अपूर्णता को विकसित करके, छांट-छांट कर पूर्ण होने की जो कोशिश है, वह एक। और एक अपूर्णता को छोड़ कर खड़े हो जाने पर जो शेष रह जाती है स्थिति, वह दो। वह भी पूर्ण है। और वह पूर्णता फिर आपकी नहीं है। क्योंकि आप तो, जो चीजें छोड़ी, उसी में बह जाएंगे। वह पूर्णता फिर समष्टि की है, वह पूर्णता फिर सर्व की है। वह पूर्णता फिर परमात्मा की है। और यह परमात्मा बड़ा सक्रिय है। और इस परमात्मा से सारा सृजन है, सारी क्रिएटिविटी है। चाहे बीज में अंकुर फूटता हो और चाहे आकाश में एक तारा निर्मित होता हो और चाहे एक फूल खिलता हो और चाहे एक व्यक्ति पैदा होता हो-यह सारा विराट का जो आयोजन है, उसी परम शून्य से है। वह शून्य महासक्रियशाली है। उस शून्य में बड़ी ऊर्जा है। हम अपने ही हाथ दीन बन जाते हैं पूर्ण होने की कोशिश में। शून्य होते ही हम परम सौभाग्यशाली हो जाते हैं, परम धन के मालिक हो जाते हैं। इसलिए लाओत्से कहता है, इसके उपयोग में सभी प्रकार की पूर्णताओं से सावधान रहना अपेक्षित है। यह कितना गंभीर है! यह शून्य! यह शून्य कितना गंभीर है! यह शून्य कितना अथाह है, मानो यह सभी पदार्थों का उदगम हो! जिससे सभी कुछ पैदा हुआ हो, जिससे सभी कुछ निकला हो, जिससे सभी कुछ जन्मा हो। जैसे यह सम्मानित पूर्वज है, सब का पिता है, सब की जननी है, सब का उदगमस्रोत है। लेकिन बड़े अदभुत शब्द उसने उपयोग किए हैं, जो कि कंट्राडिक्टरी मालूम पड़ेंगे, विरोधाभासी मालूम पड़ेंगे। क्योंकि पहले तो वह कहता है, रिक्त घड़ा है धर्म। और फिर कहता है, कितना अथाह है! अब थाह तो हम हमेशा चीजों की लेते हैं। शून्य नदी को आप अथाह न कह सकेंगे। भरी हुई नदी को, बहुत भरी हुई नदी को कहेंगे, अथाह है। बहुत होगा पानी, नाप में न अटता होगा, तो कहेंगे, अथाह है। सूनी नदी को, जिसमें जल ही न हो, कोई अथाह कहेगा, तो पागल कहेंगे। लाओत्से उसी नदी को अथाह कह रहा है, जहां जल है ही नहीं। क्यों? बहुत मजेदार है। लाओत्से कहता है कि जिसमें जल है, उसे तुम चाहे न नाप पा रहे हो, वह नापा जा सकता है। इट कैन बी मेजई, मेजरेबल है। कितनी ही तकलीफ पड़े, लेकिन इम्मेजरेबल नहीं है, अथाह नहीं है। थाह तो मिल ही जाएगी। थोड़ी और दूर होगी, थोड़ी और दूर होगी, थाह तो होगी ही। क्योंकि वस्तु अथाह नहीं हो सकती। हां, वह नदी अथाह हो सकती है, जिसमें जल न हो। क्योंकि अब तुम कैसे नापोगे? जो नहीं है, उसे नापने का कोई उपाय नहीं है। जो है, वह नापा जा सकता है। इसलिए जल वाली नदी कभी अथाह नहीं हो सकती; निर्जल नदी अथाह हो जाएगी। इस पुस्तक का श्रेय जाता है रामेन्द्र जी को जिन्होंने आर्थिक रूप से हमारी सहायता की, आप भी हमारी सहायता कर सकते हैं -देखें आखिरी पेज
SR No.002371
Book TitleTao Upnishad Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year
Total Pages285
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, K000, & K999
File Size4 MB
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