________________
Download More Osho Books in Hindi
Download Hindi PDF Books For Free
यह स्थिति है। और मनुष्य की सारी की सारी दौड़-आयाम कोई भी हो, दिशा कोई भी हो-पूर्ण होने की है। लाओत्से कहता है, शून्य हो जाओ। और लाओत्से कहता है, पूर्ण होने के किसी भी खयाल से बचना। क्योंकि वही जाल है; वही है उपद्रव, जिसमें नष्ट होता है आदमी। इसलिए समझा लेना अपने को, समझ जाना कि पूर्ण होने के किसी उपद्रव में मत पड़ना। शून्य हो जाओ। और मजा यह है कि जो शून्य हो जाता है, वह पूर्ण हो जाता है। क्योंकि शून्य जो है, वह इस जगत में पूर्णतम संभावना है।
ऐसा समझें, एक घड़ा भरा हो, तो क्या आप ऐसी कल्पना कर सकते हैं घड़े के भरे होने की कि एक बूंद पानी उसमें और न जा सके? न कर सकेंगे। घड़ा बिलकुल भरा है। आप कहते हैं, पूरा भरा है। लेकिन अगर एक बूंद पानी भी मैं उसमें डाल दूं, तो कहना पड़ेगा, अधूरा था। आप घड़े के कितने ही भरे होने की कल्पना करें, वह पूर्ण नहीं होगी। उसमें एक बूंद पानी अभी बन सकता है।
नानक अपनी यात्राओं में एक गांव के बाहर ठहरे थे। और एक फकीर, जिसकी पूर्णता के संबंध में बड़ी खबर थी, वह पहाड़ी पर अपने आश्रम में जो एक किले के भीतर था, उसमें था। नानक रुके थे, लोगों ने कहा कि वह व्यक्ति पूर्णता को उपलब्ध हो गया है। नानक ने खबर भिजवाई कि मैं भी मिलना चाहंगा और जानना चाहंगा, कैसी पूर्णता! तो उस फकीर ने एक प्याले में पानी भर कर-पूरा पानी भर कर, एक बूंद पानी और न जा सके-नानक को नीचे भिजवाया भेंट कि मैं इस तरह पूर्ण हो गया हूं। नानक ने एक छोटे से फूल को उसमें तैरा दिया और वापस लौटा दिया। छोटे फूल को उस प्याली में डाल दिया और वापस लौटा दिया।
वह फकीर दौड़ा हुआ आया, पैरों पर गिर पड़ा। उसने कहा, मैं तो सोचता था, पूर्ण हो गया हूं।
नानक ने कहा, आदमी पूर्ण होने की कोशिश में जो भी करे, उसमें जगह खाली रह ही जाती है। एक फूल तो तैराया ही जा सकता है। और एक फूल कोई छोटी बात नहीं है।
अगर हम घड़े को परा भरे होने की भी कल्पना करें, तो भी एक बंद पानी तो उसमें डाला ही जा सकता है। लेकिन समझें कि घड़ा बिलकुल खाली है। क्या और खाली कर सकेंगे? नहीं; घड़ा बिलकुल खाली है। अगर उस फकीर ने एक खाली घड़ा भेज दिया होता, तो नानक मुश्किल में पड़ जाते। क्योंकि उसको और खाली करना मुश्किल हो जाता। और भरे को और भरा जा सकता है, खाली को और खाली नहीं किया जा सकता।
इसलिए भराव में कभी पूर्णता नहीं होती, और खाली में सदा पूर्णता हो जाती है। जो एम्पटीनेस है, वह परफेक्ट हो सकती है; जो रिक्तता है, वह पूर्ण हो सकती है। इसलिए मनुष्य के अस्तित्व में एक ही पूर्णता है संभव, और वह है पूर्ण रिक्तता, पूरा खाली हो जाना।
लाओत्से कहता है, ताओ है खाली घड़े की भांति, भरे घड़े की भांति नहीं। खाली घड़े की भांति। और इसलिए जिसे भी ताओ की या धर्म की उत्सुकता है, उस यात्रा पर जो जाने को आतुर हुआ है, उसे सभी तरह की पूर्णताओं के प्रलोभन से बचना चाहिए। सभी तरह के प्रलोभन!
अहंकार पूरे होने की कोशिश करेगा। अहंकार की सारी साधना यही है कि पूर्ण कैसे हो जाऊं! और ताओ तो उसे मिलेगा, जो खाली हो जाए; जहां अहंकार बचे ही नहीं।
आदमी रिक्त हो सकता है। उसके भी कारण हैं। जो हमारे पास नहीं है, शायद उसे न पाया जा सके; लेकिन जो हमारे पास है, उसे छोड़ा जा सकता है। जो हमारे पास नहीं है, उसे शायद न पाया जा सके; क्योंकि उस पर हमारा क्या बस है! लेकिन जो हमारे पास है, उसे छोड़ा जा सकता है। उस पर हमारा बस पूरा है।
मैंने कहा, आदमी है बीच में। इस तरफ शून्य है, उस तरफ पूर्ण है। आदमी है अधूरा। कुछ उसके पास है, कुछ उसके पास नहीं है। अब दो उपाय हैं। जो उसके पास नहीं है, वह भी उसके पास हो जाए, तो वह पूर्ण हो जाए। और एक उपाय यह है कि जो उसके पास है, वह भी छोड़ दे, तो वह शून्य हो जाए। लेकिन जो हमारे पास नहीं है, वह हमारे पास हो, यह जरूरी नहीं है। यह हमारे हाथ में नहीं है। लेकिन जो हमारे पास है, वह छोड़ा जा सकता है। वह हमारे हाथ में है। उसके लिए किसी से भी पूछने जाना नहीं पड़ेगा।
अब यह बहुत मजे की बात है। अगर पूर्ण होना है, तो परमात्मा से प्रार्थना करनी पड़ेगी। तब भी नहीं हो सकते। और अगर शून्य होना है, तो किसी परमात्मा की सहायता की जरूरत न पड़ेगी। आप काफी हो। कोई मांग नहीं करनी पड़ेगी।
इसलिए जिन धर्मों ने शून्य होने की व्यवस्था की, उनमें प्रार्थना की कोई जगह नहीं है। जिन धर्मों ने शून्य होने की व्यवस्था की, जैसे बुद्ध ने या लाओत्से ने, उनमें प्रार्थना की कोई जगह नहीं है। प्रेयर का कोई मतलब ही नहीं है। क्योंकि मांगना हमें कुछ है ही नहीं, तो क्या प्रार्थना करनी है! किससे प्रार्थना करनी है! जो हमारे पास है, उसे छोड़ देंगे; और झंझट खतम हो जाती है।
जो हमारे पास नहीं है, उसे मांगना पड़ेगा। उसमें किसी के द्वार पर हाथ जोड़ कर खड़ा होना पड़ेगा। उसके लिए कुछ करना पड़ेगा।
इस पुस्तक का श्रेय जाता है रामेन्द्र जी को जिन्होंने आर्थिक रूप से हमारी सहायता की, आप भी हमारी सहायता कर सकते हैं -देखें आखिरी पेज