SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 100
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Download More Osho Books in Hindi Download Hindi PDF Books For Free फिर जितनी गहन बात हो, अपने समय से उतने ही पहले हो जाती है। जैसे लाओत्से ने जो कहा है, अभी भी शायद और ढाई हजार • साल लगेगा, तब लाओत्से कंटेंप्रेरी हो पाएगा। तब वह समसामयिक हो पाएगा, आज से ढाई हजार साल बाद तब लोगों को लगेगा कि ठीक, अब हम वहां खड़े हैं, जहां से लाओत्से को हम समझ सकें। इसे ऐसा समझें तो आसानी होगी। एक आदमी कविता करता है। अगर कविता उसकी सबको समझ में आ जाती है, अभी समझ में आ जाती है, तो दो दिन से ज्यादा टिकने वाली नहीं है। समझ नहीं आती, किसी को समझ आती है, शिखर पर जो है उसको समझ आती है, तो यह कविता हजारों साल टिक जाएगी। एक कालिदास हजारों साल टिक पाता है। एक फिल्मी गीत दो महीने भी टिक जाए तो बहुत है। फिल्मी गीत दो महीने नहीं टिकता । सब की समझ में आता है; एकदम से धुन पकड़ लेता है। मोहल्ले-मोहल्ले, गांवगांव, खेत-खेत, गली-कूचे कूचे गाया जाने लगता है। बच्चे से लेकर बूढ़े तक उसको गुनगुनाने लगते हैं। हर बाथरूम उसे सुन लेता है। फिर अचानक पाया जाता है कि वह खो गया। फिर दुबारा कभी उसकी कोई खबर नहीं मिलती। बात क्या है? सब की समझ में इ आ गया कि सब की समझ के तल का था। उसके बचने का कोई उपाय नहीं है। लेकिन जब एक कोई सच में गीत पैदा होता है, तो वर्षों लग जाते हैं; कभी-कभी कवि मर जाता है, तब पता चलता है। सोरेन कीर्कगार्ड ने किताबें लिखीं। उसकी जिंदगी में किसी को पता न चल सका। एक किताब मुश्किल से छाप पाया, तो पांच कापी बिकीं। वह भी अपने मित्रों ने खरीदीं। बाप जो पैसा छोड़ गया था, बैंक में जमा था, उसी से अपना जिंदगी भर खर्च चलाया। क्योंकि वह तो चौबीस घंटे सोचने, खोजने में लगा था। कमाने की फुर्सत न थी। बाप जो छोड़ गया था बैंक में, हर एक तारीख को उसमें से कुछ पैसा निकाल लाना है, महीना गुजार कर फिर पहुंच जाना है। जिस दिन आखिरी पैसा चुका, बैंक गया, और बैंक में पता चला ि पैसा तो पूरा समाप्त हो गया। बैंक के बाहर ही उसकी सांस टूट गई, सोरेन कीर्कगार्ड की। उसने कहा, अब तो कोई जीने की कोई बात ही न रही! जिस दिन पैसा खाते में चुक गया, उस दिन दरवाजे पर गिर कर मर गया। क्योंकि एक पैसा आने का तो कहीं से कोई उपाय न था । कोई सवाल ही न था । सौ साल किसी ने याद भी न किया सोरेन कीर्कगार्ड को उसकी किताबों का, उसके नाम का किसी को पता न था। इधर पिछले तीस-चालीस वर्ष में पुनराविष्कृत हुआ। और आज पश्चिम में जिस आदमी का सर्वाधिक प्रभाव समझा जाए, वह सोरेन कीर्कगार्ड है। और अब लोग कहते हैं कि अभी सैकड़ों वर्ष लगेंगे सोरेन कीर्कगार्ड को ठीक से समझने के लिए। लेकिन उसके गांव के लोग हंसे। लोगों ने मजाक उड़ाई कि पागल हो, अरे कुछ कमाओ ! चार पैसे कमा लो ! विनसेंट वानगॉग ने जो चित्र बनाए, आज एक-एक चित्र की कीमत तीन लाख, चार लाख, पांच लाख रुपए है। एक-एक चित्र की ! और विनसेंट वानगॉग एक चित्र न बेच सका। किसी दूकान से दो कप चाय के लिए थे, तो उसको एक पेंटिंग दे आया कि पैसे तो नहीं हैं। कहीं से एक सिगरेट का पैकेट लिया था, उसको एक पेंटिंग दे आया कि पैसे तो नहीं हैं। मरने के साठ साल बाद जब उसका पता चलना शुरू हुआ, वानगॉग का, तो लोगों ने अपने कबाड़खानों में खोज कर उसके चित्र निकाल लिए। किसी होटल में पड़ा था, किसी दूकान में पड़ा था, किसी से रोटी ली थी उसने और एक चित्र दे गया था। जिनके पास पड़े मिल गए, वे लखपति हो गए। क्योंकि एकएक चित्र की कीमत पांच-पांच लाख रुपया हो गई। आज केवल दो सौ चित्र हैं उसके लोग छाती पीट-पीट कर रोए, क्योंकि वह तो कई को दे गया था। वह कोई फेंक चुका था, कोई कुछ कर चुका था। किसी को पता नहीं था, क्या हुआ । और विनसेंट वानगॉग मनुष्य जाति के इतिहास में पैदा हुए चित्रकारों में चरम कोटि का चित्रकार है अब। लेकिन अपने वक्त में, अभी सिर्फ डेढ़ सौ साल पहले, सप्ताह में पूरे सात दिन रोटी नहीं खा सका। क्योंकि उसका भाई उसे जितना पैसा देता, वह इतना होता कि वह सात दिन सिर्फ रोटी खा सके। तो वह चार दिन रोटी खा लेता और तीन दिन के पैसे बचा कर रंग खरीद कर चित्र बना लेता। बत्तीस साल की उम्र में जब बिलकुल मरणासन्न हो गया, क्योंकि चार दिन खाना खाना और तीन दिन चित्र बनाना, यह कैसे चलता, तो गोली मार कर मर गया। और लिख गया यह कि अब कोई प्रयोजन नहीं है, क्योंकि मैं भाई को व्यर्थ तकलीफ दूं ! उसको आखिर रोटी के लिए पैसे तो देने ही पड़ते हैं। और मुझे जो बनाना था, वह मैंने बना लिया। एक चित्र, जिसके लिए मैं साल भर से रुका था, वह आज पूरा हो गया । अब ये जो लोग हैं, ये किसी और तल पर जीते हैं। उस तल पर जब मनुष्य जाति कभी पहुंचती है, तब उनका आविष्कार होता है। मगर विनसेंट वानगॉग या सोरेन कीर्कगार्ड, ये कोई एवरेस्ट पर जीने वाले लोग फिर भी नहीं हैं। ये फिर भी ऐसे ही छोटी-मोटी पहाड़ियों पर जीने वाले लोग हैं। लाओत्से तो जीता है गौरीशंकर पर वहां तक तो कभी-कभी कोई आदमी पहुंचता है। और कभी हम आशा करें कि कभी मनुष्य जाति का कोई बड़ा हिस्सा भी उस जगह निवास बनाएगा, तो हजारों-लाखों साल प्रतीक्षा करनी पड़े। इसलिए नहीं प्रभाव हो पाता। पर पुनः पुनः ऐसे लोगों को फिर-फिर खोजना पड़ता है। इनका स्वर कभी खोता नहीं, बना ही रहता है, गूंजता ही रहता है। और कई दफे तो ऐसा होता है कि हम बिलकुल ही भूल गए होते हैं। और जब कभी फिर कोई वैसी बात कहता है, तो हमें लगता है, बहुत नई बात कह रहा है। लाओत्से के शिष्य च्वांगत्से ने कहा है, एवरी डिस्कवरी इज़ जस्ट ए रि-डिस्कवरी, सब आविष्कार सिर्फ पुनर्भाविष्कार है। ऐसी कोई बात जगत में नहीं है, जो नहीं जान ली गई। लेकिन जिन्होंने जानी थी, वे इतने शिखर पर थे कि वह कभी सामान्य न हो पाई, खो गई। फिर कभी कोई दूसरा आदमी जब उसको जानता है, तो फिर ऐसा लगता है कि नया आविष्कार हो गया। यह आदमी कितनी नई बात कह रहा है! लेकिन इस जगत में कोई चीज ऐसी नहीं है, जो नहीं जान ली गई हजारों बार । पर आदमी का दुर्भाग्य कि आदमी पहाड़ों पर नहीं जीता, समतल भूमि पर जीता है। शिखरों की बातें खो जाती हैं, फिर भूल जाती हैं। फिर कभी उनको जन्माता है कोई। जब कोई जन्माता है, तो वे फिर नई मालूम पड़ती हैं। इस पुस्तक का श्रेय जाता है रामेन्द्र जी को जिन्होंने आर्थिक रूप से हमारी सहायता की, आप भी हमारी सहायता कर सकते हैं - देखें आखिरी पेज
SR No.002371
Book TitleTao Upnishad Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year
Total Pages285
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, K000, & K999
File Size4 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy