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________________ 35 जागरण की दो शक्तिशाली विधियां जागरण की दो शक्तिशाली विधियां ये वास्तव में ध्यान नहीं हैं। तुम बस लय बिठा रहे हो। यह ऐसे ही है... यदि तुमने भारत के शास्त्रीय संगीतज्ञों को वाद्य छेड़ते देखा हो... आधे घंटे तक, और कई बार तो उससे भी अधिक, वे अपने वाद्य बिठाने में लगे रहते हैं। कभी वे कुछ जोड़ों को बदलेंगे, कभी तारों को कसेंगे या ढीला करेंगे, और तबला वादक अपने तबले को जांचता रहेगा — कि वह बिलकुल ठीक है या नहीं। आधे घंटे तक वे यही सब करते रहते हैं। यह संगीत नहीं है, बस तैयारी है। कुंडलिनी विधि वास्तव में ध्यान नहीं है। यह तो तैयारी मात्र है। तुम अपना वाद्य बिठा रहे हो। जब वह तैयार हो जाए, तो फिर तुम मौन में थिर हो जाओ, फिर ध्यान शुरू होता है। फिर तुम पूर्णतया वहीं होते हो। उछल-कूद कर, नाचकर, श्वास-प्रश्वास से, चिल्लाने से तुमने स्वयं को जगा लिया – ये सब युक्तियां हैं कि जितने तुम साधारणतया सजग, हो उससे थोड़े और ज्यादा सजग हो जाओ। एक बार तुम सजग हो जाओ, तो फिर प्रतीक्षा शुरू होती है। प्रतीक्षा करना ही ध्यान है— पूरे होश के साथ प्रतीक्षा करना। और फिर वह आता है, तुम पर अवतरित होता है, तुम्हें घेर लेता है, तुम्हारे चारों ओर उसकी क्रीड़ा चलती, उसका नृत्य चलता; वह तुम्हें स्वच्छ कर देता है, परिशुद्ध कर देता है, रूपांतरित कर देता है। ।
SR No.002367
Book TitleDhyanyog Pratham aur Antim Mukti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1990
Total Pages320
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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