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ओशो से प्रश्नोत्तर
एक झूठी निश्चितता थी। वस्तुतः वह जाएगी। वह वहां होती है निश्चितता की उसका। थोड़ा साहस रखो और पीछे मत निश्चितता थी ही नहीं। इसके पीछे गहरे में पुरानी आदत होने से ही। तुम नहीं जानते देखो, आगे देखो; और जल्दी ही अनिश्चितता ही थी। इसीलिए, जब कि अनिश्चित जगत में कैसे जिया जाता अनिश्चितता स्वयं सौंदर्य बन जाएगी, अहंकार विलीन होता है, तुम अनिश्चित है। तुम नहीं जानते कि असुरक्षा में कैसे असुरक्षा सुंदर हो उठेगी। अनुभव करते हो। अब तुम्हारे अस्तित्व जिया जाता है। बेचैनी होती है पुरानी वस्तुतः केवल असुरक्षा ही सुंदर होती की ज्यादा गहरी परतें उद्घाटित हो जाती हैं सरक्षा के कारण। वह होती है केवल है, क्योंकि असुरक्षा ही जीवन है। सुरक्षा तुम्हारे सामने-तुम अजनबी अनुभव पुरानी आदत, पुराने प्रभाव के कारण। वह असुंदर है, वह एक हिस्सा है मृत्यु करते हो। तुम सदा अजनबी थे। केवल चली जाएगी। तुम्हें बस प्रतीक्षा करनी है, का-इसीलिए वह सुरक्षित होती है। बिना अहंकार ही इस अनुभूति के धोखे में ले देखना है, आराम करना है, और प्रसन्नता किन्हीं तैयार नक्शों के जीना ही एकमात्र गया कि तुम जानते थे कि तुम कौन हो। अनुभव करनी है कि कुछ घटित हुआ है। ढंग है जीने का। जब तुम तैयार निर्देशों के स्वप्न बहुत ज्यादा था, वह एकदम सत्य और मैं कहता हूं तुमसे—यह अच्छा साथ जीते हो, तो तुम जीते हो एक झूठी जान पड़ता था। लक्षण है।
जिंदगी। आदर्श, मार्ग-निर्देश, सुबह जब तुम स्वप्न से जाग रहे होते बहुत लौट गए इस स्थल से, केवल अनुशासन-तुम लाद देते हो कोई चीज हो, अचानक, तो तुम नहीं जानते कि तुम फिर से सुविधापूर्ण होने को, आराम में, अपने जीवन पर; तुम सांचे में ढाल लेते हो कौन हो और कहां हो। क्या तुमने इस सुख-चैन में होने को ही। वे चूक गए हैं। अपना जीवन। तुम उसे उस जैसा होने नहीं अनुभूति को अनुभव किया किसी मंजिल के बिलकुल करीब आ ही रहे थे, देते, तुम कोशिश करते हो उसमें से कुछ सुबह?-जब अचानक, तुम स्वप्न से और उन्होंने पीठ फेर ली। वैसा मत बना लेने की। मार्ग निर्देशन की तैयार जागते हो और कुछ पलों तक तुम नहीं करना-आगे बढ़ना। अनिश्चितता रूपरेखाएं आक्रामक होती हैं, और सारे जानते कि तुम कहां हो, तुम कौन हो और अच्छी होती है, उसमें कुछ बुरा नहीं है। आदर्श असुन्दर होते हैं। उनसे तो तुम चूक क्या हो रहा है? ऐसा ही होता है जब कोई तुम्हारा तो केवल ताल-मेल बैठना है, बस जाओगे स्वयं को। तुम अपने स्वरूप को अहंकार के स्वप्न से बाहर आता है। इतना ही।
कभी उपलब्ध न होओगे। असुविधा, बेचैनी, उखड़ाव महसूस होगा, अहंकार के निश्चित संसार के साथ, कुछ हो जाना वास्तविक सत्ता नहीं है। लेकिन इससे तो प्रफुल्लित होना चाहिए। अहंकार की सुरक्षित दुनिया के साथ होने के सारे ढंग, और कुछ होने के सारे यदि तुम इससे दुखी हो जाते हो, जो तुम तुम्हारा ताल-मेल बैठ जाता है। कितना ही प्रयास, तुम पर कोई चीज लाद देंगे। यह उन्हीं पुराने ढरों में जा पड़ोगे जहां कि चीजें झूठ क्यों न हो सतह पर, हर चीज एक आक्रामक प्रयास होता है। तुम हो निश्चित थीं, जहां हर चीज का नक्शा बना बिलकुल ठीक जान पड़ती है, जैसा कि सकते हो संत, लेकिन तुम्हारे संतत्व में था, खाका खिंचा था, जहां कि पहचानते उसे होना चाहिए। जरूरत है कि असौंदर्य होगा। मैं कहता हूं तुमसे और मैं थे हर चीज, जहां जीवन-मार्ग की अनिश्चित अस्तित्व के साथ तुम्हारा जोर देता हूं इस बात परः बिना किन्हीं रूपरेखाएं स्पष्ट थीं। ताल-मेल थोड़ा बैठ जाए।
निर्देशों के जीवन जीना एक मात्र संभव बेचैनी गिरा दो। यदि वह हो भी तो अस्तित्व अनिश्चित है, असुरक्षित है, संतत्व है। फिर तुम शायद पापी हो जाओ; उससे ज्यादा प्रभावित मत हो जाना। रहने खतरनाक है। वह एक प्रवाह है-चीजें पर तुम्हारे पापी होने में एक पवित्रता होगी, दो उसे, ध्यानपूर्वक देखो और वह भी सरक रही हैं, बदल रही हैं। यह एक एक संतत्व होगा।। चली जाएगी। बेचैनी जल्दी ही तिरोहित हो अपरिचित संसार है; परिचय पा लो जीवन पवित्र है : तुम्हें कोई चीज उस
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