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ओशो से प्रश्नोत्तर
रेचन के बाद सहज मौन और सृजन
कुछ वर्षों तक जाहली बातः हजारों जन्मों से तुम पहले से ही बाहर फेंका जा रहा होता है। रेचन ध्यान विधियों पर 1 अराजकता में रहते रहे हो। यह वह विधि में ही अंतर्गठित होता है। कार्य करने के बाद
कोई नई बात नहीं है। यह बहुत पुरानी बात जैसे पतंजलि सुझाएंगे, तुम वैसे शांत मैं अनुभव करता हं
है। दूसरी बात ः ध्यान की सक्रिय विधियां नहीं बैठ सकते। पतंजलि के पास कोई मझमें एक गहन आंतरिक जिनका कि आधार रेचन है, तुम्हारे भीतर रेचक विधि नहीं है। ऐसा लगता है उसकी
की अराजकता को बाहर निकल आने देती कोई जरूरत ही न थी, उनके समय में। सुव्यवस्था, संतुलन और
हैं। इन विधियों का यही सौंदर्य है। तुम लोग स्वभावतया ही बहुत मौन थे, शांत केंद्रण घट रहा है।
चुपचाप नहीं बैठ सकते, तो भी तुम थे, आदिम थे। मन अभी भी बहुत ज्यादा लेकिन आपने कहा कि
सक्रिय या अव्यवस्थित ध्यान बहुत क्रियाशील नहीं हुआ था। लोग ठीक से समाधि की अंतिम अवस्था में
आसानी से कर सकते हो। एक बार सोते थे, पशुओं की भांति जीते थे; वे बहुत जाने से पहले व्यक्ति एक बड़ी अराजकता बाहर निकाल दी जाती है, तो सोच-विचार वाले, तार्किक, बौद्धिक न अराजकता में से गुजरता है। तुममें एक मौन घटना शुरू होता है। फिर थे; वे हृदय में केन्द्रस्थ थे, जैसे कि अभी
मुझे कैसे पता चले कि तम मौनपूर्ण ढंग से बैठ सकते हो। यदि भी असभ्य लोग होते हैं। और जीवन ऐसा
मैंने अराजक अवस्था ध्यान की रेचक विधियां ठीक से की गयी था कि वह बहुत सारे रेचन स्वचालित रूप पार कर ली है या नहीं? हों, निरंतर की गई हों, तो वे तुम्हारी से घटने देता था।
अराजकता को एकदम विसर्जित कर देंगी उदाहरण के लिए, एक लकड़हारे को बाहरी आकाश में। तुम्हें पागल अवस्था में किसी रेचन की कोई जरूरत नहीं होती गुजरने की जरूरत न रहेगी। यही तो इन क्योंकि लकड़ियां काटने भर से ही, उसकी विधियों का सौंदर्य होता है। पागलपन तो सारी हत्यारी प्रवृत्तियां बाहर निकल जाती
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