SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 239
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ध्यान में बाधाएं दो कठिनाइयां राष्ट्रपति बन सकते हो, देश के प्रधानमंत्री बन सकते हो।" इन विचारों को लेकर वह यात्रा शुरू करता है और जैसे-जैसे वह सफल होता है, उसका अहंकार बड़े से बड़ा होता जाता है। ___ हर तरह से अहंकार सबसे बड़ा रोग है , ध्यान के मार्ग पर केवल दो कठिनाइयां हैं: एक है अहंकार। समाज के द्वारा, जो मनुष्य को लग सकता है। यदि तुम परिवार के द्वारा, स्कूल के द्वारा, चर्च के द्वारा, अपने आसपास हर किसी के द्वारा सफल हो जाओ तो तुम्हारा अहंकार बड़ा तुम सतत अहंकारी होने के लिए तैयार किए जाते हो। आधुनिक मनोविज्ञान भी हो जाता है-यह खतरा है, क्योंकि तब अहंकार को मजबूत करने पर ही आधारित है। __ तुम्हें एक बड़ी चट्टान हटानी होगी जो कि रास्ता रोके हुए है। या यदि अहंकार छोटा सकते हो। किसी भी क्षेत्र में चाहे है, तुम सफल नहीं हुए, तुम असफल अहंकार व्यापार हो, चाहे राजनीति हो, कोई भी सिद्ध हुए, तब तुम्हारा अहंकार एक घाव व्यवसाय हो तुम्हें अत्यंत आक्रामक बन जाएगा। फिर वह दुखता है, फिर वह याधुनिक मनोविज्ञान और व्यक्तित्व की जरूरत है, और हमारा पूरा हीनता की एक ग्रंथि निर्मित कर देता । आधुनिक शिक्षा की पूरी धारणा समाज बच्चे में आक्रामक व्यक्तित्व है-तब फिर उससे एक समस्या पैदा हो ही यह है कि जब तक व्यक्ति के पास निर्मित करने में लगा हुआ है। प्रारंभ से ही जाती है। तुम किसी भी चीज में जाने से, बहुत ही.मजबूत अहंकार न हो तब तक हम उसे कहना शुरू कर देते हैं, "अपनी ध्यान से भी, सदा भयभीत रहते हो, वह जीवन में संघर्ष नहीं कर पाएगा, जहां कक्षा में प्रथम आओ।" जब बच्चा कक्षा क्योंकि तुम जानते हो कि तुम असफल इतना संघर्ष है कि यदि तुम विनम्र हो तो में प्रथम आ जाता है तो हर कोई उसकी व्यक्ति हो, कि तुम असफल ही कोई भी तुम्हें एक ओर धकेल देगा; तुम प्रशंसा करता है। तुम क्या कर रहे हो? होओगे-यह तुम्हारा मन बन गया है। हमेशा पीछे ही रहोगे। इस प्रतियोगी संसार तुम शुरू से ही उसके अहंकार को पोषित तुम हर जगह असफल हुए हो, और ध्यान में लड़ने के लिए तुम्हें लोहे-सा मजबूत कर रहे हो। तुम उसे एक निश्चित तो इतनी बड़ी चीज है...तुम सफल हो ही अहंकार चाहिए। तभी तुम सफल हो महत्वाकांक्षा दे रहे होः “तम देश के नहीं सकते। 223
SR No.002367
Book TitleDhyanyog Pratham aur Antim Mukti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1990
Total Pages320
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy