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तृतीय नेत्र से देखना
तृतीय नेत्र से देखना
रब द्वारा इस जगत को दिए योगदानों में एक है इस बात का बोध कि इन दो आंखों के मध्य में भीतर की ओर एक तीसरी आंख है। सामान्यतः प्रसुप्त रहती है।
व्यक्ति को बड़ा श्रम करना होता है, अपनी पूरी काम ऊर्जा को ऊपर की ओर, गुरुत्वाकर्षण के विरुद्ध उठाना पड़ता है, और जब ऊर्जा तृतीय नेत्र पर पहुंचती है, तो वह खुल जाता है। इसके लिए कई विधियां उपयोग में लाई गई हैं, क्योंकि जब तृतीय नेत्र खुलता है तो अचानक प्रकाश की एक कौंध होती है, और जो चीजें तुम्हें कभी स्पष्ट नहीं थीं, वे अचानक स्पष्ट हो जाती हैं।
जब मैं अवलोकन, साक्षीभाव पर जोर देता हूं... यह तृतीय नेत्र को सक्रिय करने का सबसे अच्छा उपाय है, क्योंकि यह अवलोकन भीतर होता है। इन दो आंखों का प्रयोग नहीं किया जा सकता, वे केवल बाहर ही देख सकती हैं। उन्हें बंद करना जरूरी है। और जब तुम भीतर देखने का प्रयास करते हो, तो उसका निश्चित ही यह अर्थ है कि भीतर आंख जैसा कुछ है, जो देखता है। तुम्हारे विचारों को कौन देखता है ? ये आंखें तो नहीं देखतीं। कौन देखता है कि तुममें क्रोध उठ रहा है? देखने के उस स्थान को प्रतीक रूप से 'तृतीय नेत्र' कहा गया है।