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बुद्ध सद्गुरु ओशो ध्यान और मनुष्य की मुक्ति के लिए एक विश्वव्यापी क्रांति को जन्म दे रहे हैं। आप सोचेंगे : यह कैसा विषम चुनाव है ! कैसे ये दो विषय जुड़ते हैं? तथापि इन दो आयामों का जो सूक्ष्म अंतर्संबंध है वह मनुष्य के भविष्य की विकास- क्षमताओं को समझने के लिए एक निर्णायक बिन्दु है । प्रेम, आत्मीयता, सृजन और विस्तार की हमारी संभावनाओं के खुलने का द्वार
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ध्यान और ओशो के अनुसार और कोई द्वार नहीं है, और कोई दूसरा रास्ता नहीं है।
पिछले पैंतीस वर्षों से ओशो विश्व के अनेक महान धर्मों और रहस्यदर्शी गुह्य परम्पराओं का रहस्योदघाटन करते रहे हैं। उनके प्रवचनों को आज तक ६५० पुस्तकों के रूप में संकलित किया गया है, जिनमें उन्होंने अनेकानेक प्राचीन और समकालीन रहस्यदर्शियों पर जीवंत चर्चा की है और उनकी शिक्षाओं की अंतर्दृष्टि को आज के हमारे जीवन के संदर्भ में उपयोगी और समझने योग्य बनाया है।
प्रस्तुत पुस्तक ओशो द्वारा ध्यान पर दिये गये गहन प्रवचनांशों का संकलन है। इसमें ध्यान की अनेक विधियों का वर्णन है जो हमारी सहायता कर सकती हैं उस आयाम का अन्वेषण करने में जिसे उन्होंने
भूमिका
कहा है: “ध्यानयोग — प्रथम और अंतिम मुक्ति ।” ओशो ने कहा है: “ध्यान कोई नई घटना नहीं है; तुम उसके साथ ही इस जगत में जन्मे हो । मन एक नया घटक है; ध्यान तुम्हारा स्वभाव है, ध्यान तुम्हारी अंतस सत्ता है। यह कठिन कैसे हो सकता है?" 1
या तो हम ध्यान को कठिन बना लेते हैं ऐसी किसी बात से संघर्ष खड़ा करके जिसके बारे में हम सोचते हैं कि वह हमारी मुक्ति में बाधक है; या हम किसी ऐसी बात की खोज में लग जाते हैं, इस आशा के साथ कि वह हमें मुक्ति प्रदान करेगी। लेकिन वास्तव में ध्यान फलित होता है— हम जो हैं, उसमें विश्रामपूर्ण होने से—जीवन को क्षण-क्षण जीने से ।
भूमिका
सारी दुनिया में लोग संघर्षरत हैं 'किसी से' मुक्त होने में। फिर चाहे वह संघर्ष हो परेशान करने वाली पत्नी से, या नियंत्रण की चाह वाले पति से, या कि आधिपत्य करने वाले मां-बाप से या उस बॉस से जो तुम्हारी सृजनात्मकता को कुचल रहा है। मेरा संघर्ष या तो था किसी दमनकारी राजनीतिक प्रणाली से या मेरा प्रयास था अनेक समूह मनोचिकित्सा (ग्रुप थैरेपी) में भाग लेकर अपने आपको बचपन में पड़े संस्कारों से मुक्त करना। इस संघर्ष ने मुझे मुक्त नहीं बनाया। यह केवल एक प्रतिक्रिया मात्र थी उसके विरुद्ध जिसे मैं अपनी मुक्ति के मार्ग का अवरोध समझता था ।
ध्यान - जनित - मुक्ति 'किसी लक्ष्य के