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________________ सोचकर विकारवश मणिरथ राजा युगबाहु को मारने खड्ग लेकर उद्यान में आया। उद्यान के माली दरवान को कहा, 'मेरा छोटा भाई अकेला उपवन में रहे वह योग्य नहीं है।' यूं बहकाकर कदलीगृह में प्रवेश किया। एकाएक रात्रि में बड़े भाई पधारे हैं, मानकर युगबाहु मणिरथ को नमस्कार करने नीचे झुका । उसी समय मणिरथ ने जोर से खड्ग का प्रहार किया। मदनरेखा ने यह देखकर कोलाहल मचा दिया। आसपास से सैनिक दौड़े चले आये। मणिरथ को पकड़कर मारने के लिये कई सैनिक तैयार हो गये। उन्हें मना करते हुए युगबाह ने कहा, 'इसमें बड़े भाई मणिरथ का कोई दोष नहीं है, मेरे कर्मों से ही यह हुआ है।' अपनी धारणा अनुसार हुआ है यूं सोचकर मणिरथ हर्षित होता हुआ अपने महल पर जाने के लिए लौट चला लेकिन कर्म के फलस्वरूप उसी रात्रि को सर्प ने मार्ग में उसे डस लिया और वह मृत्यु पाकर चौथे नरक में पहुंच गया। ___युगबाहु का पुत्र चंद्रयशा अपने पिता के घाव की चिकित्सार्थ वहाँ आ पहुंचा। अंतिम श्वास लेते अपने पति को मदनरेखा धर्म सुना रही थी : 'हे स्वामी! आप अब किंचित खेद न करें। जो मित्र है या शत्रु स्वजन है या परिजन वे सब से क्षमा मांग लो और क्षमा भी कर दो।' इस रीत सम्यक् प्रकार से आराधना सुनाई। प्रिया के ऐसे हितवचन सुनकर युगबाहु शुभ ध्यान सहित मृत्यु पाकर ब्रह्म देवलोक के देवता बने। अपने पिता की मृत्यु हुई देखकर चंद्रयशा अत्यंत विलाप करने लगा। मदनरेखा लम्बे समय तक रुदन करते करते सोचने लगी : 'मुझे धिक्कार है, मेरा सौंदर्य मेरे पति के मौत का कारण बना। अब मणिरथ मुझे अकेली समझकर पकड़ लेगा और अपनी मनमानी पूरी कर लेगा। अब मेरा कोई रक्षक नहीं है । मेरे शील की रक्षा के लिए मुझे यहाँ से गुप्त रूप से भाग जाना चाहिये।' ऐसा निश्चय करके अकेली चल पड़ी। दूसरे दिन वह एक महाघोर जंगल में पहुँच गई, वहाँ जलाशय में जलपान तथा फल भक्षण करके एक कदलीगृह में रहने लगी। वहाँ सातवें दिन उसने एक पुत्र को जन्म दिया। उसने बालक के हाथ में युगबाहु नाम अंकित मुद्रिका पहनाई। बालक को कंबल में लपेट कर तरु की छाया में सुलाया और सरोवर में अपने वस्त्र धोने गई। उसने जल में प्रवेश किया ही था कि जलहस्ती ने सूंढ से पकड़कर उसे आकाश में उछाल दिया। उस समय नंदीश्वर द्वीप की यात्रा पर जा रहे एक विद्याधरने उसे नीचे गिरते हुए रोक लिया। विद्याधर भी मदनरेखा के रूपं पर मोहित हुआ जिन शासन के चमकते हीरे • ६६
SR No.002365
Book TitleJinshasan Ke Chamakte Hire
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVarjivandas Vadilal Shah, Mahendra H Jani
PublisherVarjivandas Vadilal Shah
Publication Year1997
Total Pages356
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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