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________________ - (३२ -रेवती सती प्रभु महावीर पर गोशाले ने तेजोलेश्या छोडी, जिससे प्रभु को असह्य वेदना हो रही थी। प्रभु की वेदना देखकर श्री गौतम स्वामी, चंदनबाला एवं अन्य मुनिगण भी बड़े व्यथित थे। सिंह अणगार तो प्रभु की पीडा की बात सुनकर बड़े व्यथित थे। प्रभु ने सिंह अणगार का दुःख टालने के लिए अपने पास बुला लिया। सिंह अणगार ने कहा, 'प्रभु! आपकी पीड़ा मैं सहन नहीं कर सकता। कुछ मार्ग निकालो जिससे आपकी पीड़ा कम हो सके। जो भी औषध आप बतायेंगे वह ला देंगे लेकिन कृपा करके प्रभु औषध का उपयोग कीजिये।' करुणा के कारण प्रभु ने अपनी शांति के लिये नहीं लेकिन सिंह अणगार के मन की शांति के लिये कहा, 'इस श्रावस्ती नगरी में रेवती नामक सती है, उसने मेरे लिए नहीं परंतु स्वयं के लिए जो औषध बनाया है वह ले आओ।' सिंह अणगार तो खोजते खोजते पहुँच गये रेवती के घर! रेवती ने सिंह अणगार का स्वागत किया, आने का कारण पूछा। सिंह अणगार ने कहा, 'आपने जो औषध स्वयं के लिये बनाया है उसकी मुझे जरूरत है, वह दो।' रेवतीने आश्चर्य सह कहा, 'ऐसी गूढ बात कही किसने?' सिंह अणगार ने कहा : 'प्रभु महावीर ने तेजोलेश्या से होती पीडा दूर करने के लिए आपका बनाया हुआ बीजोरापाक भिक्षा में दे दो जिससे प्रभु को हुआ अतिसार व दाह मिट जावें।' रेवती ने अत्यंत भावपूर्वक बीजोरापाक अर्पण किया और धन्यता का अनुभव किया। मैं कितनी भाग्यशाली! खुद परमात्मा के रोग की शांति के लिये यह दवा काम आई। ऐसी शुभ भावना करते करते और प्रभु पर की भक्ति के कारण उसने तीर्थंकर नाम कर्म-उपार्जित कर लिया। औषधि से प्रभु-महावीर को आरोग्य प्राप्त हुआ और रेवती के दान के कारण रेवती का जीव अगली चौबीसी में सत्रहवें समाधि नामक तीर्थंकर होगा। जिन शासन के चमकते हीरे . ६४
SR No.002365
Book TitleJinshasan Ke Chamakte Hire
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVarjivandas Vadilal Shah, Mahendra H Jani
PublisherVarjivandas Vadilal Shah
Publication Year1997
Total Pages356
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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