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वृद्ध कहता है - 'यदि यह तेजोलेश्या अन्य किसी पर छोड़ी गई होती तो वह तुरंत जलकर खाक हो जाता - लेकिन ये तो थे तीर्थंकर, इसलिये उनकी मृत्यु न हुई लेकिन...' इतना कहते हुए वृद्ध का हृदय भर आया। वह अधिक न बोल सका। बालक ने कहा, 'पिताजी! अटक क्यों गये? बाद में क्या हुआ?' ____ 'बेटा! भगवान को खून के दस्त हो रहे हैं।' इतना कहते हुए वृद्ध सिसक कर रो पड़ा।
पास खड़े सिंह अणगार दौडकर आये। वार्ता सुनकर उनके हृदय में भयंकर पीड़ा उमड़ पडी थी, अश्रुधाराएँ बह रही थी। उन्होंने पूछा : 'भाई! तत्पश्चात् क्या हुआ?'
'भगवान का निर्मल चन्द्रमा जैसा मुख तेजोलेश्या के ताप से श्याम हो गया। भगवान के पूरे शरीर पर पीड़ा हो रही है। इस गर्मी से प्रभु छः माह से अधिक नहीं जी सकेंगे।' वृद्ध इससे आगे कुछ नहीं कह सकता।
सिंह अणगार की पीड़ा बढ़ती गई। प्रभु यह सब कैसे सहन करते होंगे? अधिक से अधिक शोकसागर में वे डूबते गये। एक कोने में बैठकर वे करुण रुदन करने लगे।
उस वक्त सब रो रहे थे - गौतम स्वामी से लेकर प्रत्येक साधु की आँखे भर आई थी। चंदनबाला और दूसरे अन्य स्त्री-पुरुष-देव और दानव भी शोक छाया में गिर पड़े थे। सिंह अणगार तो ऐसे रोये कि चुप ही न हो सके। भगवान महावीर श्रीवस्ति से विहार करके मिंढिक गाँव पधारे । वहाँ केवलज्ञान के प्रकाश में उन्होंने सिंह अणगार के आक्रंद से तड़पते हुए जीव को देखा। भगवान ने तुरंत गौतम स्वामी को बुलाकर सिंह अणगार को ले आने की आज्ञा दी। थोड़े ही समय में दो अणगारों ने सिंह अणगार को भगवान के चरणों में उपस्थित किये। __भगवान की पीड़ित देह नजर पड़ते ही उनकी पीड़ा बढ़ गई। वे नीचे बैठ गये। कंठ भर आया। आँखे सुज गई थी।
'सिंह!!!' मधुर वाणी से भगवान ने अणगार को नज़दीक बुलाया। 'प्रभु! आपको इतनी सारी पीडा?' रोते रोते उत्तर दिया।
प्रभु बोले : 'सिंह लोगों के मुख से तूने सुना है न कि छ: महिने में मेरी मृत्यु हो जायेगी।'
जिन शासन के चमकते हीरे • ४८