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________________ लिये उठाया । एक खरगोश दावानल से बचने के लिए दूसरा सुरक्षित स्थान न मिलने के कारण पैर तले आकर बैठ गया । तूने नीचे देखा। पैर नीचे रखूंगा तो खरगोश मर जायेगा - ऐसा सोचकर पैर ऊँचे ही रखा। ढाई दिन में दावानल शांत हुआ। सब जानवर अपने स्थान पर लौटने लगे। खरगोश भी अपने स्थान पर चल पड़ा। क्षुधा और तृषा पीडित तूं पानी पीने के लिए दौड़ने तैयार हुआ लेकिन लम्बे समय से पैर उठाया हुआ रखने से अकड़ा गया। तूं दौड़ न सका और पृथ्वी पर गिर पड़ा। इस प्रकार भूख - तृषा से पीडित तुमने तीसरे दिन मृत्यु पाई।' भगवानने याद कराते हुए कहा, 'खरगोश पर की हुई दया के पुण्य से तूं राजपुत्र बना । ज्यों त्यों यह मनुष्य भव प्राप्त हुआ है । हाथी के भव में इतनी पीडा सहन कर सका है तो मनुष्य भव में इतने छोटे मोटे कष्ट सह नहीं सकता? एक जीव को अभयदान करने से इतना बड़ा फल मिला तो सर्व जीवों को अभयदान देनेवाले मुनिरूप से प्राप्त होनेवाले फल की क्या बात !! भवसागर पार करने के लिए उत्तम अवसर मिला है। तूंने जो व्रत स्वीकार किया है उसका भली प्रकार से पालन कर और भवसागर पार कर ले 1 'प्रभुवाणी सुनकर मेघकुमार व्रत में स्थिर हुए। रात्रि को किये गलत विचार का प्रायश्चित करके विविध तप करने लगे । इस प्रकार उत्तम ढंग से व्रत पालन करके मृत्यु पाई और विजय विमान में देवता बने। वहाँ से महाविदेह में उत्पन्न होकर मोक्ष पायेंगे | असत्य राह पर से प्रभु परम सत्य पर तूं ले जा । गहरे अंधकार में से प्रभु परम प्रकाश पर तूं ले जा । महा मृत्यु में से प्रभु अमृत तरफ तूं ले जा । तुम बिन मैं हीन हूँ प्रभु तेरे दर्शन का दान दे जा। जिन शासन के चमकते हीरे • २४
SR No.002365
Book TitleJinshasan Ke Chamakte Hire
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVarjivandas Vadilal Shah, Mahendra H Jani
PublisherVarjivandas Vadilal Shah
Publication Year1997
Total Pages356
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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