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________________ |१३ –सनतकुमार चक्रवर्ती कुरू देश के गजपुर नगर में सनतकुमार राज्य करते थे। उन्होंने सर्व राजा-रजवाड़ों को वश करके चक्रवर्ती पद प्राप्त किया था। वे खूब स्वरूपवान थे। उनके जैसा सुन्दर रूप पृथ्वी पर किसीका न था। इन्द्र महाराजा ने देवों की सभा में सनतकुमार के रूप की प्रशंसा की। इन्द्र महाराज की वाणी सुनकर दो देवों को शंका हुई। खेद पाकर दोनों देव रूप की परीक्षा करने ब्राह्मण वेष धरकर सनतकुमार के पास पधारे। उस समय सनतकुमार स्नान करने बैठे थे। उनका रूप देखकर दोनों देव हर्षित हुए। सचमुच! जगत में किसीका न हो ऐसा रूप देखकर सनतकुमार को कहा, 'आपका रूप देखने के लिए बड़ी दूर से आये हैं, वाकई विधाताने आपको बेमिसाल रूप दिया है।' ऐंसा कहकर खूब बखान किये। सनतकुमार ने कहा, ''इस समय मेरी यह काया स्नान के हेतु उबटन से भरी हुई है और काया खेह से भरी होने से बराबर नहीं है। मैं नाहकर पोषाक-अलंकार धारण करके राज्यसभा में बैलूं तब मेरा रूप देखना। यथार्थ रूप देखना हो तो राज्यसभा में पधारना।' राज्यसभा की तैयारी हुई। सनतकुमार आभूषण वगैरह से सजधज कर आये और दोनों देव भी ब्राह्मण वेष में सनतकुमार का रूप निहारने पधारे। सनतकुमार स्नान करने बैठे थे उस समय का रूप उन्हें न दिखा, काया रोग से भरी हुई दिखाई दी। सनतकुमार को उन्होने कहा, 'नहीं, आपकी काया रोग से भरी हुई है।' सनतकुमार को मानसिक ठेस पहुंची लेकिन कहा, 'मेरे रूप में क्या कमी है? मैं कहाँ रोगी हूँ?' देवों ने कहा : एक नहीं, सोलह रोग से आपकी काया भरी हुई है।' सनतकुमार ने अभिमान से कहा, 'आप पिछड़ी बुद्धि के ब्राह्मण हैं।' ब्राह्मणों ने कहा, 'एक बार यूंककर देखो तो सही।' सनतकुमार का मुख तांबूल से भरा हुआ था। उन्होंने यूंककर देखा तो उसमें कीड़े बिलबिलाते हुए देखें। वे यह देखकर सोचने लगे, 'अरे रे! ऐसी मेरी काया? इस काया का क्या भरोसा?' ऐसा सोचकर छः खण्ड का राज्य-कुटुम्ब-कबीला सब कुछ छोड़कर चारित्र ग्रहण कर लिया। उनके सेनापति, उनकी स्त्रीयाँ वगैरह हाथ जोड़कर राज्य में रहकर, राज्य जिन शासन के चमकते हीरे • २१
SR No.002365
Book TitleJinshasan Ke Chamakte Hire
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVarjivandas Vadilal Shah, Mahendra H Jani
PublisherVarjivandas Vadilal Shah
Publication Year1997
Total Pages356
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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