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________________ १२ - श्री अमरकुमार राजगृही नगरी के श्रेणिक राजा जब धर्मी न थे, वे चित्रशाला के लिए एक सुंदर मकान का निर्माण करवा रहे थे। कोई कारण से उसका दरवाजा बनवाते और टूट जाता था। बार बार ऐसा होने से महाराजा ने वहाँ के पंडितों और ज्योतिषियों को बुलवाकर इसके बारे में राय मांगी। ब्राह्मण पंडित कोई बत्तीस लक्षणवाले बालक की बलि चढ़ाने की राय दी, इसलिये बत्तीस लक्षणवाले बालक की खोज प्रारंभ हुई। ऐसा बालक लाना कहाँ से? इसके बारेमें राजा ने गाँव में ढिंढोरा पिटवाया कि, जो कोई बालक बलि के लिए देगा उसे बालक के वजन जितनी सुवर्णमुद्राए दी जायेगी। इसी राजगृही नगरी में ऋषभदास नामक एक ब्राह्मण रहता था। भद्रा नामक उसकी स्त्री थी। उनके चार पुत्र थे। कोई खास आमदनी या आय न होने से दरिद्रता भुगत रहे थे। उन्होंने चार में से एक बेटा राजा को बलि के लिए सौंपने का विचार किया, जिससे सुवर्णमुद्राएँ प्राप्त होने के कारण कंगालपन दूर हो सके। इन चार पुत्रों में एक अमरकुमार माँ को अप्रिय, एक बार जंगल में लकड़ी काटने गया था तब उसे जैन मुनि ने नवकार मंत्र सिखाया था। उसने माँ बाप को बहुत प्रार्थना की - 'पैसे के लिए मुझे मरवाओ मत।' ऐसे आनंद के साथ चाचा, मामा आदि सगे-सम्बन्धियों को खूब बिनतियाँ की लेकिन उसकी बात किसी ने न मानी। बचाने के लिए कोई तैयार नहीं हुआ। इसिलिये राजाने उसके वजन जितनी सुवर्णमुद्राएँ देकर अमरकुमार का कब्जा ले लिया। अमरकुमार ने राजा से बहु आजिज़ी करके बचाने के लिए कहा। राजा को दया तो खूब आई लेकिन - इसमें कुछ भी मैं गलत नहीं कर रहा हूँ - यूं मन मनाया। सुवर्णमुद्राएँ देकर बालक खरीदा है, कसूर तो उसके मातापिता का है जिन्होंने धन के खातिर बालक को बेचा है। ____ मैं बालक को होम में डालुंगा तो वह मेरा गुनाह नहीं है - ऐसा सोचकर अंत में सामने आसन पर बैठे पण्डितों की ओर देखा। ___पंडितों ने कहा, 'अब बालक के सामने मत देखो। जो काम करना है वह जल्दी करो। बालक को होम की अग्निज्वालाओं में होम दो।' जिन शासन के चमकते हीरे . १९
SR No.002365
Book TitleJinshasan Ke Chamakte Hire
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVarjivandas Vadilal Shah, Mahendra H Jani
PublisherVarjivandas Vadilal Shah
Publication Year1997
Total Pages356
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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