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________________ गौतम सोच में डूबा कि 'क्या यह मेरे गोत्र और नामको भी जानता है? हं... जानता ही होगा न, मुझ जैसे जगप्रसिद्ध मनुष्य को कौन नहीं जानेगा? परंतु यदि मेरे हृदय में रहे हुए संशय को वह बताये और उसे अपनी ज्ञान संपत्ति से छेद डाले तो वे सच्चे आश्चर्यकारी हैं, ऐसा मैं मान लूं। .. इस प्रकार हृदय में विचार करते ही ऐसे संशयधारी इन्द्रभूति को प्रभु ने कहा, 'हे विप्र! जीव हैं कि नहीं? ऐसा तेरे हृदय में संशय है, परंतु है गौतम! जीव है, वह चित्त, चैतन्य विज्ञान और सज्ञा वगैरह लक्षणों से जाना जा सकता है। यदि जीव न हो तो पुण्य - पाप का पात्र कौन? और तुझे यह यज्ञ - दान वगैरह करने का निमित्त भी क्या?' इस प्रकार के प्रभु के वचन सुनकर उसने मिथ्यात्व के साथ संदेह भी छोड़ दिया और प्रभु के चरणों में नमस्कार करके बोला, 'हे स्वामी! ऊँचे वृक्ष का नाप लेने वामन पुरुष की भाँति मैं दुर्बुद्धि से आपकी परीक्षा लेने यहाँ आया था। हे नाथ! मैं दोषयुक्त हूँ, फिर भी आपने मुझे भली प्रकार से प्रतिबोध दिया है । तो अब संसार से विरक्त बने हुए मुझको दीक्षा दीजिये। अपने प्रथम गणधर बनेंगे ऐसा जानकर प्रभु ने उनको पाँचौं शिष्यों के साथ स्वयं दीक्षा दी। उस समय कुबेर देवता ने चारित्र धर्म के उपकरण ला दीये और पांचसौं शिष्यों के साथ इन्द्रभूति ने देवताओ ने अर्पण किये हुए धर्म के उपकरण ग्रहण किये। इन्द्रभूति की तरह अग्निभूति वगैरह अन्य दस द्विजों ने बारी बारी से आकर अपना संशय प्रभु महावीर ने दूर किया, इसलिये अपने शिष्यों के साथ दीक्षा ग्रहण की। वीर प्रभु विहार करते करते चम्पानगरी पधारे । वहाँ साल नामक राजा तथा महासाल नामक युवराज प्रभु की वन्दना करने आये। प्रभु की देशना सुनकर दोनों ने प्रतिबोध पाया। उन्होने अपने भानजे गागली का राज्याभिषेक किया और दोनों ने वीर प्रभु से दीक्षा ग्रहण की। प्रभु की आज्ञा लेकर गौतम साल और महासाल साधू के साथ चम्पानगरी गये। वहाँ गागली राजा ने भक्ति से गौतम गणधर की वंदना की। वहाँ देवताओं ने रचे सुवर्ण कमल पर बैठ कर चतुर्ज्ञानी गौतम स्वामीने धर्मदेशना दी। वह सुनकर गागलीने प्रतिबोध पाया तो अपने पुत्र को राज्यसिंहासन सौंपकर अपने मातापिता सहित उन्होंने गौतम स्वामी से दीक्षा ली। ये तीन नये मुनि और साल, महासाल, ये पाँच जन गुरु गौतम स्वामी के पीछे जिन शासन के चमकते हीरे • ३१९
SR No.002365
Book TitleJinshasan Ke Chamakte Hire
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVarjivandas Vadilal Shah, Mahendra H Jani
PublisherVarjivandas Vadilal Shah
Publication Year1997
Total Pages356
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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