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________________ रात्री पूरी होने पर वृद्ध स्त्री नागिला के साथ भवदेव जहाँ था उस मंदिर में आई। भवदेव ने पूछा, 'यहाँ नागिला कहाँ रहती है ? वह क्या करती है ?' उस समय पहले से सीखाया हुआ बालक वहाँ आया और कहने लगा, 'हे माता ! मुझे आज गाँव में भोजन का आमंत्रण मिला है, वहाँ दक्षिणा भी मिलनेवाली है, सो तू घर चल; विलम्ब मत कर । मुझे प्रथम तो दूध पीकर वमन करके निकाल देना है और वहाँ भोजन-दक्षिणा ले आने के बाद वमन किया हुआ वापिस पी जाऊँगा।' ऐसा सुनकर भवदेव हँसकर कहने लगे, 'अहो... यह बालक ! ऐसा वमन किया हुआ निंदा के योग्य दूध फिर से पीयेगा?' ___यह सुनकर नागिला बोली, मैं आपकी स्त्री नागिला हूँ। पूर्व आपके द्वारा त्याग की हुई मुझे पुनः आप क्यों ग्रहण करना चाह रहे हो। ऐसा कौन अज्ञानी है जो वमन किये हुए आहार को पुनः ग्रहण करने के भांति छोडी हुई स्त्री को प्राप्त करना चाहे । स्त्री को अनंत दु:ख की खान समान कही है, इसलिये हे मूढाशय ! नवविवाहित वधू भाँति मुझे याद करते हुए आप यहाँ पधारें। लेकिन अब अवस्था से जर्जरित मुझे देखो।संसार में क्या सार है ? और हे साधक ! संसार समुद्र में गिरते प्राणियों के तारक जहाज समान इस दीक्षा का त्याग करके दुर्गति देनेवाली स्त्री को क्यों ग्रहण करना चाहिये।' __ आखिर में मुझे कहते हुए आनंद आ रहा है कि मैंने गुरु से आजीवन शीलव्रत ग्रहण किया है क्योंकि स्त्रीयों को शील ही एक उत्तम आभूषण है । इसलिये हे नाथ ! आप गुरु के पास जाओ और शुद्ध चारित्र प्राप्त कर लो।' स्त्री से प्रतिबोधित और खुश हुए भवदेव नागिला से क्षमा याचना करके अपने गुरु के पास गये। वहाँ उन्होंने अपना दुश्चरित्र सम्यक् प्रकार से छोड़कर पुनः चिरकालपर्यंत शुद्ध चरित्र पाला। कालानुसार वे सैधर्म देवलोक में देवता बने। इस भवदेव का जीव शिवकुमार के रूप में वितशोका नगरी में पद्मरथ राजा की पटरानी वनमाला की कोख से उत्पन्न हुआ। अपनी इच्छा होने पर भी माँ-बाप की अनुमति न मिलने से शुद्ध श्रावक धर्म पालकर अंत में अनशन ग्रहण किया और भाव चारित्रवान शिवकुमार ब्रह्मदेव लोक में विद्युतमाली देवता बने। ___ यही भवदेव याने विद्युतमाली का जीव वहाँ से ऋषभदत्त सेठ का पुत्र जंबूकुमार के रूपमें अवतरित हुआ। वह केवलज्ञान प्राप्त करके, मोक्ष जायेंगे और केवली होंगे। उनके पश्चात् अन्य कोई जीव केवलज्ञान इस अवसर्पिणी काल में भरत क्षेत्रमें नहीं पायेगा। इसलिये मोक्ष भी कोई जीव जंबूस्वामी के बाद नहीं जायेगा। जिन शासन के चमकते हीरे . १४१
SR No.002365
Book TitleJinshasan Ke Chamakte Hire
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVarjivandas Vadilal Shah, Mahendra H Jani
PublisherVarjivandas Vadilal Shah
Publication Year1997
Total Pages356
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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