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होने आया लेकिन अभया की युक्ति काम न आई। इससे वह घबरा गई। बहुत सोचकर अब अंत में वह सुदर्शन पर तोहमत लगाने का विचार करने लगी।सुदर्शन को कलंकित ठहराने के लिये उसने स्वयं अपने आप शरीर पर खरोंचे भरी और 'बचाओ, बचाओ... मुझ पर कोई बलात्कार करने आया है' ऐसा चिल्लाने लगी।
आवाज़ - चीखपुकार सुनकर कई नौकरों ने वहां आकर सेठ की कायोत्सर्ग मुद्रा देखी, यह संभव नहीं ऐसा मानकर वे राजा को बुला लाये। राजाने आकर पूछा : 'क्या है?' ___अभया ने कहा, 'मैं यहाँ बैठी थी, इतने में पिशाच जैसे इसको अचानक आया हआ मैंने देखा । भैंसे समान उन्मत बने इस पापी कामव्यसनीने कामक्रीडा के लिए अनेक प्रकार से नम्रतापूर्वक मुझको प्रार्थना की लेकिन मैंने इसको धुत्कार दिया, 'तु | असती की तरह सती की इच्छा मत कर, परंतु मेरा कहा इसने माना नहीं और बलात्कार से इसने मुझे ऐसा किया।'
इस प्रकार कहकर उसने खरोंचे बताई और अंत में कहा, 'इस कारण मैं चिल्लाने लगी, अबला और करे भी क्या?'रानी ने ऐसा कहा लेकिन राजा को विचार आया कि 'सुदर्शन के लिये यह संभव नहीं है।' .
सुदर्शन को अंत:पुर में खड़े देखा और खुद अपनी पटरानी ने आरोप लगाया, जुल्म गुजारा हो ऐसे चिह्न भी राजा ने देखे । ऐसे दार्शनिक ठोस सबूत होने पर भी राजा ने सोचा, 'सुदर्शन के लिए यह संभवित नहीं है!' सुदर्शन की ख्याति, धर्मशीलता एवं उसकी प्रतिष्ठा ने चंपानगरी के मालिक राजा दधीवाहन को सोच में डाल दिया। रानी की हाजिरी में राजा ने सुदर्शन को कहा, 'जो भी हो वह सच कहो! इसमें सत्य क्या है?' सुदर्शन तो कायोत्सर्ग में ही स्थिर थे। राजा ने बार बार पूछा लेकिन सुदर्शन मौन रहे । वे समझते थे कि 'मैं बेगुनाह हूँ लेकिन सच्ची बात कहूँगा तो रानी का क्या होगा? जो आपत्ति मुझे इष्ट नहीं है वह रानी पर आयेगी। रानी बदनाम हो जायेगी और शायद सूली पर लटकना पड़ेगा।' सुदर्शन अब मौन रहते हैं तो आपत्ति उन्हें झेलनी पड़ती है और यदि बोलते हैं तो आपत्ति रानी को उठानी पड़े ऐसा है।
सुदर्शन ने सोचा कि मेरा धर्म क्या है? अहिंसा पालन - यह सदाचार है। और हिंसा अनाचार है। अहिंसा पालनरूपी सदाचार की रक्षा करने का कर्तव्य एक सदाचारी के सम्मुख मौका बनकर खड़ा था। __कुछ भी हो, दृढ़ता से मौन रहने का निश्चय कर लिया, अपनी बदनामी ही नहीं, अपितु सूली भी संभव है। शीलरक्षा के लिए अभया का कष्ट सहा अब दयापालन के लिए जो भी आफत आये वह सहने के लिए सुदर्शन तैयार हुए। बार
जिन शासन के चमकते हीरे . १२७