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श्री मंगलाचरण
आदिमं पृथिवीनाथमादिं मं निष्परिग्रहम् । आदिमं तीर्थनाथं च ऋषभ स्वामिनं स्तुमः॥
कमठे धरणेन्द्रे च, स्वोचितं कर्मकुर्वति । प्रभुस्तुल्य मनोवृत्तिः, पार्श्वनाथः श्रियेस्तुवः॥
मंगलं भगवान वीरो, मंगलं गौतम प्रभुः। मंगलं स्थूलिभद्राद्याः जैन धर्मोस्तु मंगलम् ।
लब्धिवंत गौतम गण धार, बुद्धिमांहि श्री अभयकुमार, प्रहर उठ कर प्रणाम, शीयलवंत का लीजे नाम । पहला नेमि जिनेश्वरराय, बाल ब्रह्मचारी लागुं पाय, बीजा जंबुकुमार महाभाग, रमणी आठ को किया त्याग। त्रीजा स्थूलिभद्र सुजाण, कोश्या प्रतिबोधि गुणखाण, चौथा सुदर्शन शेठ गुणवंत जिसने किया भव का अंत पांचमा विजयसेठ नर नार, शियल पाली उतर्या भवपार, ए पांच को विनंति करूं, भवसागर ते हेला तरूं ।
यतकृपारसमास्वाद्य, मुखोपि विदुषायते; देवी सरस्वती वंदे, जिनेन्द्रमुख वासिनीम्।
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