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________________ की खान है।' वगैरह बोध दिया लेकिन मोहांध हुए अषाढाभूति ने गुरुजी की बात न मानी और उन्हें ओघा सौंप दिया। नट के घर आकर दोनों नट पुत्रीओं के साथ ब्याह किया और संसारी बने एवं सुंदर नाटक खेलने लगे। एक बार राजसभा में 'राष्ट्रपाल और भरतेश्वर वैभव' नाटक खेलने गये लेकिन कुछ कारणवश राजा ने खास अन्य कार्य होने से नाटक बंद रखा और अषाढाभूति घर लौटे। ___अषाढाभूति जलदी वापस लौटनेवाले नहीं है यूं जानकर दोनों स्त्रीयाँ माँस-मदिरा का सेवन करके होश खोकर अश्लीलतापूर्वक पलंग में सो रही थी। मुंह पर मक्खियाँ भिनभिना रही थी, क्योंकि अयोग्य भक्षण के कारण दोनों को उल्टियाँ हो गई थी ऐसी दशा में दोनों स्त्रीयों को देखकर अषाढाभूति की आत्मा जल उठी, वे सोचने लगे, 'अरे रे! ऐसी स्त्रीयों के मोह में मैंने दीक्षा छोडी? धिक्कार है मुझे ! मुझे यह संसार छोड़ देना चाहिये। दुबारा गुरुजी के पास जाकर दीक्षा स्वीकार करनी ही चाहिये।' दोनों स्त्रीयों को अपनी दीक्षा की इच्छा कहकर कदम उठाये लेकिन दोनो स्त्रीयों ने दामन पकड़कर उनकी भरणपोषण की जिम्मेदारी पूर्ण करने के बाद जाओ - ऐसा आग्रह किया। इससे उनकी बात स्वीकार करके वे योग्य समय पर राजसभा में नाटक करने गये। ५०० राजकुमारों के साथ उन्होंने भरतेश्वर का नाटक हूबहू खेलना शुरु किया, नाटक में वे एकाकार हो गये और भरत महाराज की भाँति दर्पण भवन में अंगूठी सरक जाते अनित्य भावना में डूब गये और नटरूप में ही अषाढभूति को ५०० राजकुमारों के साथ केवलज्ञान प्राप्त हो गया हो - ऐसा अभिनय करके गुरु के पास आये। श्वसुर को राजा से धन दिलाया और अषाढाभूति वापिस गुरु के पास पधारकर चारित्र लेकर कठिन व्रत पालकर, पाप की आलोचना, अनशन करके कालक्रमानुसार मोक्ष को पधारे। । । । हो मेरे नमन आपको, दु:ख काटनेवालेष, । हो मेरे नमन आपको, भूमि शोभित करनेवाले, हो मेरे नमन आपको, आप देवाधिदेवा, हो मेरे नमन आपको, संसृति काल जैसा। ...... -- जिन शासन के चमकते हीरे . ८६
SR No.002365
Book TitleJinshasan Ke Chamakte Hire
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVarjivandas Vadilal Shah, Mahendra H Jani
PublisherVarjivandas Vadilal Shah
Publication Year1997
Total Pages356
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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