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उदायीनृप के हत्यारे का दृष्टांत
श्री उपदेश माला गाथा ३१ आराधना करो। विषय में अनुराग का परिणाम बहुत बुरा होता है। तुमने पूर्वजन्म में नियाणा किया था। उस समय मैंने तुम्हें बहुत मना किया था। परंतु तुम मोक्षसुख देने वाले चारित्र को हारकर, राज्य और स्त्री के सुख के लिए अपने आपको भूल गये थे। अभी भी कुछ नहीं बिगड़ा। यदि भोगों को सर्वथा नहीं छोड़ सकते तो कम से कम आर्य कर्म करो। जिससे नरक-तिर्यंचगति से बच सकोगे। अन्यथा तुम्हें नरक का मेहमान बनना पड़ेगा।" पूर्वजन्म के साक्षी मुनिभ्राता के वचन सुनकर चक्री बोला-"बन्धु! मोक्षसुख किसने देखा है? यह विषय आदि सुख तो प्रत्यक्ष हैं। इसीलिए भाई! तुम भी मेरे घर चलो और वहाँ मैं तुम्हारे लिये देवसुख के साधन जुटा दूंगा। सांसारिक सुख का अनुभव करो। इस सिर मुंडाने में क्या विशेषता है? घर-घर भीख मांगना शोभा नहीं देता। अतः पधारो, पहले अच्छी तरह से भोगों का सुखभोग कर लो। बाद में संयम अंगीकार कर लेना।" ब्रह्मदत्त के ये वचन सुनकर मुनि ने कहा- भला ऐसा कौन मूर्ख होगा जो राख के लिए चन्दन को जलाएँ? "भला कौन ऐसा मूढ़ होगा, जो जीने के लिए कालकूट विष खाये? कौन नीच मनुष्य लोहे की कील के लिए सवारी को तोड़ेगा? कौन धागे के लिए मोती का हार तोड़ेगा? कोई भी समझदार ऐसा कार्य नहीं करता। इसीलिए हे भाई! अब प्रतिबोध प्राप्त करो।'' इस तरह ब्रह्मदत्त ने भाई के वचन अनेक बार सुने, फिर भी उसे वैराग्य नहीं हुआ। अन्तन्तोगत्वा, यह दुर्बुद्धि वाला है, इसे बोध नहीं लग सकता; ऐसा जानकर चित्रमुनि ने भाई से अनुमति लेकर अन्यत्र विहार किया और ब्रह्मदत्त अपने घर में ही रहा। अनेक पापाचरण करने लगा। चित्रमुनि चिरकाल तक साधुजीवन की आराधना करके केवलज्ञान प्राप्त कर मोक्ष के अधिकारी बनें, और ब्रह्मदत्त के द्वारा पूर्वभव में नियाणा करने से वह धर्म प्राप्ति से वंचित होकर अनेक पापकर्म उपार्जित करके सात सौ वर्ष की आयु पूर्ण कर सातवीं नरक का अधिकारी बना।
इसी तरह जो मनुष्य गुरुकर्मा होते हैं, उन्हें प्रतिबोध नहीं लगता। अतः सुलभबोधि होना अति दुर्लभ है। यही इस कथा का तात्पर्य है।
उदायीनृप के हत्यारे का दृष्टांत पाटलीपुत्र नगर में कोणिक राजा का पुत्र उदायी नाम का राजा राज्य करता था। उदायी राजा ने किसी का राज्य छीन लिया था। इसीलिए उसके वैरी राजा ने एक दिन अपनी सभा में घोषित किया-"जो उदायी राजा को मारकर आयेगा; उसे मैं उसकी इच्छानुसार इनाम दूंगा।" यह सुनकर उस राजा के किसी
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