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श्री उपदेश माला गाथा ३१
ब्रह्मदत्तचर्की की कथा ___"रावण के मस्तक में एक सौ आठ बुद्धियां रहती थीं, किन्तु जब लंका का विनाशकाल निकट आया तो एक बुद्धि भी काम नहीं आयी।''॥३१॥
चांडाल में यह भी विचार किया कि यह प्रधान महाबुद्धिमान है। मेरे घर में रहकर मेरे अपने लड़कों को पढ़ा सकता है। मेरे लड़कों को चांडाल समझकर ओर तो कोई पढ़ायेगा नहीं। अतः यदि यह मेरे लड़कों को पढ़ाना कबूल कर ले तो मैं इसको न मारकर अपने घर में गुप्तरूप से रखकर इसकी रक्षा करूँ।" चाण्डाल ने मन में यह निश्चय करके नमुचि से कहा-"अगर आप मेरे दोनों लड़कों को पढ़ाना स्वीकार करें तो मैं आपको न मारकर अपने घर में छिपाकर रख सकूँगा; अन्यथा मैं राजाज्ञा के उल्लंघन का खतरा मोल नहीं ले सकता।"
नमुचि ने चाण्डाल की बात मान ली। (मरता क्या नहीं करता) चाण्डाल ने उसे घर पर, लाकर राजा के भय से गुप्तरूप से तलघर में रखा। नमुचि वहाँ रहकर चित्र और सम्भूति को पढ़ाने लगा। दोनों तीव्र बुद्धि वाले थे। इसीलिए थोड़े ही समय में समस्त शास्त्रों में पारंगत हो गये। लेकिन नमुचि की कामान्धता यहाँ भी न गयी। अपनी दुष्ट आदत के अनुसार यहाँ भी चित्र और सम्भूति की माता को अपने मोह-जाल में फंसाकर उसके साथ दुराचार करने लगा। सच है; कामान्ध पुरुष का स्वभाव छूटना बहुत कठिन होता है, भले ही वह बहुत ही विकट परिस्थिति में हो। कहा भी है
कृशः काण: खञ्जः श्रवणरहितः पुच्छविकलो, व्रणी पूयक्लिन्नः कृमिकुलशतैरावृततनुः । क्षुधाक्रान्तो जीर्णः पिठरककपालार्पितगलः, शुनीमन्वेति श्वा हतमपि च हन्त्येव मदनः ॥३२॥
अर्थात् - जो शरीर से दुर्बल है, काना है, लंगड़ा है, बहरा है, पूंछ से विकल है, जिसके घावों से मवाद झर रहा है, जिसके शरीर में सैकड़ों कीड़े पड़ गये हैं, जो भूख से व्याकुल है, शरीर बुढ़ापे से लड़खड़ा रहा है,
और जिसके गले में ठीकरा डाला हुआ है; ऐसा कुत्ता भी कुत्तिया को देखते ही उसके पीछे लग जाता है। अफसोस है, कामवासना मरे हुए को भी मारती है।" ॥३२॥
अतः काम का स्वभाव दुस्त्यज है। कहा भी हैउखल करे धबुक्कडा, घरहर करे घरट्ट । जिहां जेअंगसभावडा, तिहां ते मरण निकट्ट ॥३३।।
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