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________________ भरतचक्रवर्ती का दृष्टांत श्री उपदेश माला गाथा २० योजन ऊँचे, नौ योजन चौड़े और बारह योजन लम्बी मंजूषा (पेटी) के आकार के होते हैं। इनमें वैडूर्यमणि के दरवाजे होते हैं। यह स्वर्णमय व विविध प्रकार के रत्नों से परिपूर्ण होते हैं। इसके अधिष्ठाता देव इसी नाम के और एक पल्योपम आयुष्य वाले होते हैं। ____भरतचक्रवर्ती ने वहाँ आठ दिन का निधान-सम्बन्धी महोत्सव किया। गंगा नदी की अधिष्ठायिका गंगादेवी भरत चक्रवर्ती को अपने घर ले गयी। भरत ने उसके साथ एक हजार साल सुखोपभोग में बिताये। उसके बाद चक्री आगे बढ़ा। वेताढ्य पर्वत पर पहुँचकर चक्री ने नमि, विनमि नाम के विद्याधरों को जीता। नमि विद्याधर ने चक्रवर्ती को अपनी पुत्री दी। वह उनकी स्त्रीरत्न बनी। इस तरह भरत चक्रवर्ती साठ हजार वर्ष तक दिग्विजय कर वापस अयोध्या में लौटा। इस प्रकार वह षट् खण्डाधिपति महाऋद्धिमान हुआ। चक्रवर्ती की ऋद्धि का थोड़ा-सा वर्णन इस प्रकार है चक्रवर्ती के स्वामित्व में चौरासी लाख हाथी, उतने ही रथ और घोडे, छियानवे करोड़ पैदल सेना, बत्तीस हजार देश होते हैं तथा बत्तीस हजार मुकुटबद्ध राजा उनकी सेवा करते हैं। ४८ हजार महानगर, ७२ हजार नगर, ९६ करोंड़ गाँव, २० हजार स्वर्ण आदि धातु की खानें, चौदह रत्न, नौ निधि उनके अधीन होते हैं। साठ हजार वर्णावली (बिरुदावली) कहने वाले भाट, साठ हजार पंडित, दस करोड़ ध्वजा धारण करने वाले, पाँच लाख दीपक धारण करने वाले, २५ हजार देव उनके सेवक होते हैं और १८ क्रोड घुड़सवार उनके पीछे-पीछे चलने वाले होते हैं। इतनी ऋद्धि होने पर भी भरत चक्रवर्ती अंतर से इनसे विरक्त रहता था। इस तरह कई लाख पूर्व (वर्ष) व्यतीत होने पर एक दिन भरतचक्रवर्ती ने अपनी शृंगारशाला (शीशमहल) में अपने शरीर के जितने ऊँचे कद वाले (आदमकद) आइने (दर्पण)1 में अपना रूप देखा। दर्पण में उनका अंग-अंग बड़ा सुन्दर और आकर्षक लग रहा था। सहसा उनके हाथ की अंगुली से एक अंगूठी नीचे गिर पड़ी। अंगूठी के गिरते ही हाथ की 1. शीश महल - अर्थात् काच की दीवारें न होकर रत्न जडीत दीवारें होनी चाहिए जिसमें ___ व्यक्ति का प्रतिबिंब स्पष्ट रूप से होता होगा। शोभा कम हो गयी। फिर वह क्रमशः अन्य आभूषण एक-एक करके उतारने लगा। अब तो शरीर एकदम शोभारहित नजर आने लगा। भरत चक्रवर्ती के मस्तिष्क में विचारों की बिजली चमकी-"अहा! क्या पर पुद्गलों से ही शरीर 38 - -
SR No.002364
Book TitleUpdeshmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherGuru Ramchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages444
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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