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________________ श्री उपदेश माला गाथा २० भरतचक्रवर्ती का दृष्टांत योजन का प्रयाण करते थे, कुछ दिनों में वे पूर्व समुद्र के किनारे आ गयें। वहाँ उन्होंने सेना का पड़ाव डाला। भरत ने वहाँ अट्ठम तप किया। मन में मागधदेव का ध्यान करके तीन दिन के बाद रथ में बैठकर, समुद्रजल में रथ को धुरी तक ले जाकर अपना नाम बाण पर अंकित कर धनुष पर रखकर छोड़ा। वह बाण बारह योजन जाकर मागधदेव की सभा में सिंहासन से टकराकर जमीन पर पड़ा। उसे देखते ही मागधदेव क्रोधित हुए और बाण को उठाकर देखा तो उस पर भरत चक्रवर्ती का नाम पढ़ा। पढ़ते ही कोप शान्त हो गया और भेंट लेकर वह देव परिवारसहित सामने आया और चक्रवर्ती के चरणों में पड़कर बोला-"स्वामी! मेरा अपराध क्षमा करें। मैं आपका सेवक हूँ। इतने दिनों तक मैं स्वामि-रहित था; आज आपके दर्शन से सनाथ हुआ हूँ। इस तरह नमस्कार कर भेंट रखकर भरतचक्री की आज्ञा लेकर अपने स्थान पर गया। उसके बाद भरतचक्री ने अट्ठम-तप का पारणा किया। उसके बाद चक्र आकाश में चला, सेना भी उसके पीछे-पीछे चली। क्रमशः वे दक्षिण समुद्र के किनारे आये। वहाँ पहले की तरह दिशा के स्वामी वरदामदेव को जीता। उसके बाद पश्चिम दिशा के स्वामी प्रभासदेव को जीतकर उत्तर दिशा की ओर चक्र चला; यों क्रमशः वैताढ्य पर्वत के पास आकर चक्रवर्ती ने अट्ठमतप कर मन में तमिस्रा गुफा के अधिष्ठायक कृतमालदेव का ध्यान किया। अट्ठम-तप के अंत में देव प्रत्यक्ष हुआ और उसने तमिस्रा गुफा का दरवाजा खोला। भरत चक्री ने सैन्य सहित तमिस्रा गुफा में प्रवेश किया, मणिरत्न के प्रकाश से सैन्य आगे बढ़ा। आगे गुफा में निम्नगा और उन्निम्नगा नाम की दो नदियाँ आयी। चर्मरत्न के सहारे से दोनों नदी पार उतरे। आगे चलकर दूसरे दरवाजे से बाहर निकले और सैन्य वहीं रखा। वहाँ बहुत से म्लेच्छ राजा एकत्रित होकर भरतचक्री के साथ युद्ध करने लगे। भरतचक्री ने सबको जीत लिया और वे सब उनके सेवक बनें। वहाँ से तीन खंड जीतकर आगे चलते-चलते मार्ग में नदी का किनारा देख विश्राम के लिए उचित जानकर वहीं सेना का पड़ाव डाला। उस किनारे पर नौ निधान प्रकट हुए। उनका स्वरूप एक गाथा में इस प्रकार है उप्पसे १ पंडुए २ पिंगलए ३ सव्वरयणं ४ महापउमे ५ । काले ६ अ महाकाले ७, माणवग ८ महानिही संखे ९ ॥३।।। १. नैसर्प, २. पांडुक, ३. पिंगल, ४. सर्वरत्न, ५. महापद्म, ६. काल, ७. महाकाल, ८. माणवक और ९. शंख। ये नौ निधानों के नाम हैं ॥३॥ ये गंगा के मुख में रहने वाले हैं। इनमें आठ पहिये होते हैं। ये आठ 37
SR No.002364
Book TitleUpdeshmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherGuru Ramchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages444
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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