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________________ रणसिंह का चरित्र श्री उपदेश माला दिव्याभरण वस्त्रादि भूषित उस कमलवती के साथ पांच प्रकार के विषयभोगों को भोगते हुए अपने जन्म को सार्थक मानता था। एकदिन कुमार ने कमलवती से पूछा-हे सुलोचना! किसी ब्राह्मण को विधाता के पास आते देखा था? कमलवती ने कहा-है प्राणनाथ! वह मैं ही हूँ| उसने सब जटिका का स्वरूप निवेदन किया। यह सुनकर कुमार अत्यंत संतुष्ट हुआ। मेरे पति रत्नवती की ओर किंचित् भी नहीं देखते हैं अत्यंत निःस्नेही हो गये है। यह मेरा ही अवर्णवाद प्रवर्त होगा। जो कि इस का अपराध है फिर भी मुझे वह दूर करना है। क्योंकि किये हुए अपकार का प्रत्युपकार करने में क्या आश्चर्य? अपकार पर उपकार करना यह सत्पुरुषों का लक्षण है। कहा है उपकारिणि वीतमत्सरे वा सदयत्वं यदि तत्कुतोऽतिरेकः । अहिते सहसाऽपराधलुब्धे, सरलं यस्य मनः सतां स धूर्यः । उपकारी या मात्सर्य रहित पर सदय होना उसमें अतिरेक कहां है? अहित करनेवाले या सहसा अपराध करनेवाले पर भी जिसका मन सरल है वह सत्पुरुषों में प्रधान है। ___ इस प्रकार विचारकर कमलवती ने कुमार के पास वर मांगा कुमार ने कहा जो तेरी इच्छा हो वह मांगा कमलवती ने कहा यदि इच्छानुसार देते हो तो रत्नवती पर भी मेरे जैसे स्नेही बनो। जो कि उसने अपराध किया है फिर भी क्षमा करो। क्योंकि तुम उत्तम कुल में जन्मे हुए हो। कुलीन पुरुषों को अधिक समय तक क्रोध को रखना योग्य नहीं है। कहा हैन भवति भवति च न चिरं, भवति चिरं चेत्फले विसंवदति । कोपःसत्पुरुषाणां, तुल्य स्नेहेननीचानां ॥ सत्पुरुषों को क्रोध होता नहीं, हो जाय तो ठहरता नहीं, ठहर जाय तो फल नहीं देता। नीचपुरुषों के स्नेह के तूल्य समझना। और स्त्रीयों का हृदय प्रायःकर निर्दय होता है। कहा है अनृतं साहसं माया, मूर्खत्वमतिलोभता । अशौचं निर्दयत्वं च स्त्रीणां दोषा:स्वभावजाः ।। असत्यभाषण, साहस, माया, मूर्खता, अतिलोभ, अशुद्धि, और निर्दयता ये दोष स्त्रियों में स्वभाव से होते है। स्वकार्य में तत्पर होने पर वह नीच कार्य भी कर लेती है। कहा है कर्मोदयाद्भवगतिर्भगवतिमूला शरीर निवृत्तिः । तस्मादिन्द्रियविषया विषयनिमित्ते च सुखदुःखे ।। 16
SR No.002364
Book TitleUpdeshmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherGuru Ramchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages444
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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