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________________ श्री उपदेश माला रणसिंह का चरित्र हा..! महा अनर्थ होगा। स्त्री वियोग से ऐसा पुरुष रत्न मरेगा। उसे चित्ता में गिरने में उद्यत देखकर पुरुषोत्तम राजा बटुक के पास जाकर कहता है कि भो देव! तेरे वचन का वह उल्लंघन नहीं करेगा अतः उसे विनती कर जिससे यह इस पाप से निवृत हो जाय। तब देवपूजक ने आकर कहा-भद्र! उत्तम कुल में उत्पन्न आपको नीच कुलोचित यह कार्य करना उचित नहीं है। आप जैसे सदाचारी पुरुष में ऐसा कार्य संभवित नहीं है, क्योंकि अग्निप्रवेश आदि से अनंत संसार की वृद्धि होती है और उसमें भी मोहातुर होकर मरना अत्यंत दुःखदायी है। आपने मुझ से वादा किया था कि मैं आपको पुनः चक्रधर गाँव पहुँचाने आऊँगा। आप अपने वचन से विपरीत कार्य नहीं कर सकते। आप कमलवती के पीछे मरने जा रहे है वह भी व्यर्थ है क्योंकि जीव स्वकर्म वश परभव प्राप्त करता है। पंडितजन भविष्य का विचार कर कार्य करते है। बिन विचारे तथा शीघ्रता से काम करने पर वह भविष्य में शल्य के समान दुःखदायी होता है। इसलिए आप चित्ता-प्रवेश छोड़ दे क्योंकि जीवित नर सैकडों कल्याण का पात्र बनता है। यदि आप मेरी बात स्वीकारोगें तो भविष्य में आपको कमलवती का संयोग हो पाएगा। अब अगर मूढ़ता से प्राण त्याग करोगे तो उसका संगम दुर्लभ ही होगा। यह सुनकर कुमार ने पूछा-हे मित्र! क्या आप अपने ज्ञानबल से जान सकते है कि वह मुझे मिलेगी? जिससे तुम मुझे अग्नि प्रवेश में अंतराय करते हो? देवपूजक ने कहा--कुमार! मैं ज्ञानबल से जान रहा हूँ कि कमलवती विधाता के पास है। यदि आप कहे तो मैं स्वयं विधाता के पास जाकर कमलवती को यहाँ भेजता हूँ| कुमार ने कहा-आप विलंब न करे। यदि मैं पुनः कमलवती को देखूगा तो ही मेरा जन्म सफल होगा। देवपूजक ने कहा-कुमार! बिना दक्षिणा के मंत्र-विद्या आदि सिद्ध नहीं होते। कुमार ने कहा-मित्र! मेरे प्राण भी तेरे आधीन है। इससे बढ़कर और क्या दक्षिणा दूँ? देवपूजक ने कहा-तुम्हारी आयु दीर्घ हो। मैं जब जो चीज माँगूंगा उस समय वह मुझे देना। कुमार ने उसे वर दिया। देवपूजक ने संजीविनी जटिका सभी को दिखायी। पर्दे के पीछे जाकर ध्यान करने लगा। यह ब्राह्मण बड़ा ज्ञानी है इस प्रकार लोग परस्पर बातचीत करने लगे। उसने अपने कानों से जटिका दूर कर दी और कमलवती के रूप में बाहर आया। कमलवती ने अपने पति को प्रणाम किया। कुमार उसे देखकर हर्षित हुआ। ___उसके रूप लावण्य सौभाग्यादि देखकर लोक विस्मयपूर्वक बोलने लगेजैसे स्वर्ण के पास पितल शोभा नहीं देता, वैसे कमलवती के पास रत्नवती नहीं शोभती। इसके लिए कुमार का यह साहस योग्य था। धन्य है यह कुमार, धन्य है यह कमलवती। इस प्रकार उनकी प्रशंसा करता हुआ जन समुदाय अपने अपने स्थान पर गया। कुमार भी हर्षित होकर महोत्सवपूर्वक सपरिवार अपने आवास में गया। वहां = 15
SR No.002364
Book TitleUpdeshmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherGuru Ramchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages444
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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