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श्री उपदेश माला गाथा ४३६
दर्दुरांक देव की कथा एकदम सावधान होकर फुदकता-फुदकता भगवान् महावीर के दर्शन-वंदन करने के लिए बावड़ी से निकल कर चला। रास्ते में श्रेणिकराजा की सवारी भी अपनी चतुरंगिणी सेना सहित भगवान् महावीर के दर्शनार्थ जा रही थी। सहसा वह मेंढक एक सैनिक के घोड़े की टाप के नीचे आकर कुचला गया। वहीं भगवान् महावीर के दर्शनों के शुभध्यान में उसकी मृत्यु हो गयी। मरकर वह प्रथम देवलोक में दर्दुरांक नाम का देव बना। वहाँ अवधिज्ञान से उसने अपने पूर्वजन्म का हाल जाना।
___ एक दिन दर्दुरांक देव श्रेणिक राजा के सम्यक्त्व की परीक्षा के लिए एक कोढ़िये का रूप बनाकर भगवान् महावीर के चरणों में पहुँचा। श्रेणिकराजा भी उस समय भगवान् की सेवा में ही बैठा था। वह कोढ़िया रूप-धारी देव अपने शरीर पर से कोढ़ का बदबूदार मवाद, जो वास्तव में चंदन का रस था; लेकर भगवान् के अंग पर लेप करने लगा। यह देखकर श्रेणिक राजा को बहुत गुस्सा चढ़ा। मन ही मन सोचा-"यह कौन पापी भगवान् की इस प्रकार अवज्ञा कर रहा है? समवसरण से बाहर निकलने दो इसे! इसकी पूरी खबर लूंगा।" संयोगवश उसी समय भगवान् को छींक आयी। इस पर उस देव ने कहा-"आप जल्दी मरें।" थोड़ी देर बाद ही राजा श्रेणिक को छींक आयी। इस पर उसने कहा- "चिरकाल तक जीएँ।'' कुछ ही क्षणों के पश्चात् अभयकुमार ने भी छींका। इस पर देव ने कहा- "चाहे जीएँ, चाहे मरें।' इसके अंतर 'कालसौकरिक' कसाई को छींक आयी। इस पर उसने कहा-"न जीओ, न मरो।" इन चारों बातों में से भगवान् के लिए एकदम मरने का नाम सुनकर श्रेणिक राजा की त्यौरियाँ चढ़ गयी। उसने गुस्से में आगबबूला होकर अपने सेवकों से कहा-'समवसरण से बाहर निकलते ही इस दुष्ट कोढ़ी को पकड़कर बांध लेना। अतः भगवान् का प्रवचन पूर्ण होने के बाद ज्यों ही वह समवसरण से बाहर निकला राजा के सुभटों ने इसे घेर लिया। मगर वह देव वैक्रियशक्ति से तुरंत आकाश में उड़कर वहाँ से भागने में सफल हो गया। यह देखकर श्रेणिक राजा भौंचक्का-सा रह गया। उसने वापिस आकर भगवान् से पूछा- "भगवन्! यह कोढिया कौन था? जो आपको मरने के लिए कह रहा था।" तब भगवान् ने सेडुक से लेकर दर्दुरांक होने तक की आद्योपांत सारी कहानी सुनायी। साथ ही यह भी कहा-"कोढ़िये का रूप बनाकर उसने मेरे अंग पर कोढ़ की मवाद का लेप करने का तुम्हारे मन में भ्रम पैदा किया था, वह सिर्फ तुम्हारी परीक्षा के लिए किया था; वास्तव में वह दिव्य चंदन का ही लेप था।" श्रेणिक राजा ने फिर प्रश्न किया- "तब फिर उसने आपके लिए जल्दी मरने, मेरे लिये चिरकाल तक जीने, अभयकुमार के लिए जीने चाहे मरने और कालसौकरिक
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