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________________ श्री उपदेश माला रणसिंह का चरित्र नदी का पानी, तांबुल, यौवनावस्था का स्त्री का शरीर, कौन पीना, खाना और देखना नहीं चाहता अतः मुझे तो प्राण त्याग से भी शील का रक्षण करना अच्छा है। इस संसार में शील से उत्तम दूसरा परम पवित्र अकारण कोई मित्र नही कहा हैनिर्धनानां धनं शीलमनलंकारभूषणं । विदेशे परमं मित्रं, प्रेत्यामुत्र सुखप्रदम् ॥ शील ही निर्धनों का धन, बिना अलंकार भी भूषण, विदेश में परम मित्र और इस लोक-परलोक में परम मित्र है। पुनः शील के प्रभाव से प्रदीप्त अग्नि भी शांत हो जाती है। सर्पादि का भय नष्ट हो जाता है। आगम में भी कहा है देवदाणवगंधव्वा जक्खरक्खसकिन्नरा । बंभयारिं नमसंति, दुक्करं जे करिति ऊ ॥ जो देइकणयकोडिं, अहवा कारेइ कणयजिणभवणं । तस्स न तत्तियं पुण्णं, जत्तियं बंभव्वए धरिए ॥ यक्ष, राक्षस, किन्नर सभी ब्रह्ममचारी को नमस्कार करते हैं। कोई करोड स्वर्ण मुद्राएँ दान में दे अथवा कोई स्वर्ण से जिनभवन का निर्माण कराएँ। उनको उतना पुण्य नही मिलता, जितना ब्रह्मचर्यव्रत धारक को मिलता जटिका के प्रभाव से कमलवती ने ब्राह्मण वेष धारण किया। नगर की पिश्चिम दिशा में चक्रधर गाँव है। उस गाँव में चक्रधर देव का मंदिर है। पूजारी के रूप में उस मंदिर में रहकर, वह सुख पूर्वक काल व्यतीत करने लगा। इधर सारथी ने कमलवती की सब बातें राजा से निवेदन की। यह सुनकर उसने जाना कि यह सब किसी का षड्यंत्र है। वह इस प्रकार अपने मन में पश्चात्ताप करने लगा-हा! हा! निर्दोष कमलवती पर दोषारोपण कर मुझ अधम ने यह कैसा आचरण किया है? वह मेरी प्राणप्रिया, कमलाक्षी कमलवती क्या कर रही होगी? मैं क्या करूं? उसके बिना सब सुना लग रहा है। कारण है कि सति प्रदीपे सत्यग्नौ सत्सु नानामणीषु च । विनैकां मृगशावाक्षीं, तमोभूतमिदं जगत् ।। दीपक, अग्नि और मणिरत्नों के प्रकाश में भी एक मृगाक्षी के नहीं होने से मेरे लिए यह जगत अंधकारमय हो गया है। ___ मैंने यह क्या किया? मेरी पत्नी मुझे कब मिलेगी? मैं अधन्य आत्मा, लोगों को अपना मुँह कैसे दिखाऊँगा? मुझे धिक्कार है। मेरे हृदय में ऐसा विचार 11
SR No.002364
Book TitleUpdeshmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherGuru Ramchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages444
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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