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________________ श्री उपदेश माला रणसिंह का चरित्र दुष्ट स्त्री रहती थी। रत्नवती ने उसे बुलाकर कहा-माता! मेरा एक काम करोगी? रणसिंहकुमार कमलवती में अत्यंत आसक्त है। तुम ऐसा करो कि कुमार उसे कलंकित देखकर घर से बाहर निकाल दे। गंधमुषिका ने कहा-यह तो कुछ भी नही है। मैं थोडे दिनो में ही यह कार्य पूर्ण करूँगी, इस प्रकार स्वीकार कर थोडे दिनों के प्रयाण पश्चात् वह रणसिंह के नगर में आयी। अंत:पुर में प्रवेशकर कनकवती के कमरे में गयी। कनकवती से उसने रत्नवती के कुशल समाचार सुनाएँ। कनकवती ने उसका सन्मान किया। वह प्रतिदिन अंतःपुर में आती, कुतुहल-विनोद आदि कथाएँ सुनाती और कमलवती से विशेष बातचीत करती और उसे विश्वास उत्पन्न हो वैसी-वैसी प्रवृत्ति करती। एकबार उसने कूटविद्या से कमलवती के कमरे में किसी परपुरुष कों प्रवेश करते कुमार को दिखाया। परंतु कुमार के मन में लेश मात्र भी शंका नही हुई और सोचा-कमलवती का शील सर्वथा निष्कलंक है। बार-बार परपुरुष के दर्शन से कुमार के मन में शंका उत्पन्न हुई-क्या कमलवती शील से खंडित हो गयी है। क्योंकि मैं यह घटना प्रत्यक्ष देख रहा हूँ। कुमार ने कमलवती से कहा-मैं प्रतिदिन तुम्हारे कमरे में परपुरुष को आते-जाते देख रहा हूँ। तब कमलवती ने कहा-प्राणनाथ! मैं इस विषय में कुछ भी नहीं जानती हूँ। यदि आप इस प्रकार पूछ रहे है, तो यह मेरे कर्मो का ही दोष है। मैं मंदभागी हूँ। यदि पृथ्वी मुझे मार्ग दे तो मैं अंदर प्रवेश कर लूँ। मैं इम शब्दो को सुनने में समर्थ नहीं हूँ। कुमार ने सोचा-इसमें कमलवती का कोई अपराध नही है। अवश्य यह भुत आदि की चेष्टा है। अंतःपुर में प्रवेश कर कौन अकाल मरण की अभिलाषा कर सकता है? यहाँ पर प्रतिदिन आने का साहस कौन कर सकता है? इस प्रकार कुमार अच्छी तरह से विचार करने लगा, किंतु सत्य मालूम नही होने से, वह दुःखित हुआ। गंधमुषिका ने विचार किया-अब भी कुमार का मन कमलवती से विमुख नही हुआ? उस पर से स्नेह हटाने के लिए दूसरा उपाय करती हूँ, ऐसा सोचकर तांबूल-भोजन आदि को मंत्रित चुर्णादि के प्रयोग से जलाने लगी। लोकनिंदा से भयभीत होकर कुमार ने सोचा-कमलवती को पिता के घर भेजना उचित है, इसे यहाँ रहते संकट की संभावना है। अपने सेवको को बुलाकर कहा-कमलवती को रथ में बिठाकर उसके पिता के घर छोड़ आओ। सेवकों ने सोचा-आज स्वामी ने कैसी अनुचित बात कही है? कमलवती के समीप जाकर उन्होंने कहा-स्वामिनी! आज स्वामी ने आपको वाटिका में बुलाया है। रथ में बैठकर शीघ्र चलें। कमलवती रथ में बैठी, उसकी दायीं आँख फड़कने लगी। उसने सोचा-न जाने आज क्या होनेवाला है? किंतु पति ने बुलाया
SR No.002364
Book TitleUpdeshmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherGuru Ramchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages444
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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