________________
कण्डरीक और पुण्डरीक की कथा
श्री उपदेश माला गाथा २५२ प्रासि रूप या मोक्ष प्रासि रूप कार्य) सिद्ध कर लेते हैं; जैसे महर्षि पुण्डरीक ने अल्पकाल में ही सद्गति प्राप्त कर ली थी ।।२५२।।
इस संबंध में पुण्डरीक और कण्डरीक दोनों की कथा एक दूसरे से संबंधित होने से दोनों की कथा एक साथ ही दी जा रही है
कण्डरीक और पुण्डरीक की कथा जम्बूद्वीप के अंतर्गत महाविदेह क्षेत्र में पुष्पकलावती-विजय में पुंडरीकिणी नाम की महानगरी थी। वहाँ महापद्म नामक राजा राज्य करता था। उसकी रानी का नाम पद्मावती था। रानी की कुक्षि से पुण्डरीक और कण्डरीक नाम के दो पुत्र हुए। एक बार महापद्म राजा को संसार से विरक्ति हो जाने से उसने अपने बड़े पुत्र पुण्डरीक को राजगद्दी तथा छोटे पुत्र कण्डरीक को युवराजपद देकर स्वयं ने एक स्थविर मुनि से दीक्षा ग्रहण कर ली। महापद्म मुनि चारित्र की सम्यग् आराधना करके केवलज्ञान प्राप्तकर मोक्ष पहुँचे। पुण्डरीक राजा राज्यसंचालन करने लगे।
एक दिन दोनों भाईयों ने किसी स्थविर मुनि से धर्मोपदेश सना, जिससे दोनों को संसार से विरक्ति हो गयी। घर आते ही बड़े भाई पुंडरीक ने अपने छोटे भाई कंडरीक से कहा- ''भाई! मैं स्थविर मुनि से मुनि दीक्षा लेकर स्व-परकल्याण करना चाहता हूँ। तुम यह राज्य ग्रहण करो और प्रजा का पुत्रवत् पालन करो।" कण्डरीक ने फौरन कहा-"बड़े भाई! मुझे इस वैराग्य में बाधक राज्य से क्या प्रयोजन! पिताजी ने आपको राज्य दिया है, आप ही इसे संभालें। मैं तो स्थविर मुनि से सर्वविरति चारित्र ग्रहण करना चाहता हूँ।" यों सविनय निवेदन करके अपने बड़े भाई से आज्ञा लेकर कण्डरीक ने मुनिधर्म ग्रहण कर लिया। दीक्षा के बाद उसने ११ अंगशास्त्रों का अध्ययन किया। स्थविर मुनियों के साथ उग्रविहार और प्रायः रूखा-सूखा नीरस आहार करने से कण्डरीक के शरीर में महारोग पैदा हो गया।
एक बार विहार करते हुए वे पुण्डरीकिणी नगरी आये। पर्दापण के समाचार सुनकर पुण्डरीक राजा भी उन्हें सहर्ष वंदनार्थ पहुँचा। राजा ने पहले अन्य स्थविर मुनियों को और फिर अपने भाई कण्डरीक मुनि को वंदना की तो उन्हें अत्यंत रूग्ण और दुर्बल जानकर वह अपनी यानशाला में विनति करके ले गया। वहाँ राजा ने कण्डरीक मुनि की चिकित्सा शुद्ध औषध द्वारा करवायी। इससे उनका शरीर स्वस्थ हो गया। अतः स्थविर मुनियों ने तो वहाँ से विहार करने की इच्छा राजा के सामने प्रकट की; मगर कण्डरीक मुनि स्वादिष्ट, मिष्ट और गरिष्ठ भोजन
320