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________________ सत्यकि विद्याधर की कथा श्री उपदेश माला गाथा १६४ सत्यकि से कहा- "तेरे शरीर का एक भाग मुझे बता, जिसमें मैं प्रवेश करूँ।" तब सत्यकि ने अपना कपाल बताया। रोहिणी विद्यादेवी ने ललाटमार्ग से अंग में प्रवेश किया, जिससे ललाट में तीसरा नेत्र उत्पन्न हुआ। उसके बल से उसने सर्वप्रथम अपने पिता पेढाल को ही साध्वीजी (माता) का ब्रह्मचर्यभंग करने वाला जानकर विद्या के प्रभाव से उसे मार दिया। और कालसंदीपक विद्याधर सत्यकि को विद्याबल से अजेय जानकर माया से त्रिपुरासुर का रूप बनाकर भाग गया। वह लवणसमुद्र में जाकर पाताल कलश में छिप गया। लोगों में यह अफवाह फैली कि 'सत्यकि विद्याधर ने त्रिपुरासुर को पाताल में घुसा दिया। इसीलिए सत्यकि नाम का यह ग्यारहवाँ रुद्र उत्पन्न हुआ है। इसके पश्चात् सत्यकि विद्याधर ने श्रीमहावीर भगवान् से सम्यक्त्व अंगीकार किया और देवगुरु धर्म पर अत्यंत भक्तिमान हुआ। तीनों संध्याओं के समय भगवान् के आगे नृत्य करता था, परंतु वह विषय-सुखों में अतिलोलुप था। अतः राजा की, प्रधान की, व्यापारी आदि की रूपवती स्त्रियों को देखते ही उनका गाढ़ आलिंगन कर उसके साथ संभोग करता था। उसे रोकने में कोई भी समर्थ नहीं था। एक दिन उसने महापुरी उज्जयिनी में चंडप्रद्योत राजा के अन्तःपुर में प्रवेश किया। वहाँ पर भी पद्मावती को छोड़कर अन्य सभी स्त्रियों से संभोग किया। इससे चंडप्रद्योत राजा ने उस पर क्रोधित होकर घोषणा करवाई-"जो कोई इस दुष्टकर्मी सत्यकि को मार डालेगा, मैं उसका मनचाहा पूर्ण करूँगा।" इस तरह की घोषणा से लोगों को पता लग गया। एक दिन नगर की उमा नाम की वेश्या ने उसे पकड़ने का बीड़ा उठाया। उमा एक दिन अपने घर के झरोखे में बैठी थी, उस समय उसने सत्यकि को विमान में बैठकर आकाशमार्ग से जाते हुए देखा। उसे देखकर वेश्या ने जोर से पुकारा–'ओ चतुरशिरोमणि! सुरूपजनों में मुकुटरूप! तेज में सूर्य को भी मात करने वाले! तुम हमेशा भोलीभाली और विषयरस से अनभिज्ञ स्त्रियों को चाहते हो, परंतु मुझ-सी कामकला में कुशल स्त्री की ओर नजर उठाकर भी नहीं देखते इसीलिए आज तो मेरे आंगन में पधारो और एक दिन मेरा भी कामचातुर्य देख लो' इस प्रकार के वचनों से सत्यकि बड़ा खुश हुआ, वेश्या के कटाक्ष, हावभाव आदि देखकर उसका चित्त भी आकर्षित हुआ। अतः सत्यकि ने विमान नीचे उतारा और विमान से उतरकर सीधे उस नायिका के घर में प्रवेश किया। वेश्या ने भी हास्य, विनोद, संगीत, राग-रंग, नृत्य आदि अनेक प्रकार की कामक्रीड़ा से उसका चित्त कामविह्वल कर दिया। फलतः वह वेश्या के 272
SR No.002364
Book TitleUpdeshmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherGuru Ramchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages444
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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