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रणसिंह का चरित्र
श्री उपदेश माला कर्म करनेवाली स्त्री ने किसी अन्य के पास से मृत बालक लाकर उसे दिखाया। तथा विजया के पुत्र को उसे समर्पित कर दिया। अजया ने दासी को बुलाकर कहा-वन के अंधेरे कुएँ में इस बालक को फेंक दे। बालक को लेकर दासी वन में गयी, कूएँ के समीप खड़ी होकर इस प्रकार मन में सोचने लगी-मुझे धिक्कार है। इस छोटे बालक को मारकर मुझे क्या मिलेगा? विपरीत, इस दुष्कर्म के आचरण से नरकादि गतियों का दुःख प्रत्यक्ष ही है। इस प्रकार विचारकर कुएँ के समीप घास से युक्त जमीन पर उस बालक को छोड़कर दासी वापिस आयी, वह काम किया ऐसा अजया को कहा, कार्य पूर्ण होने की बात सुनकर अजया. मन में अत्यंत खुश होने लगी और विजया के पुत्र को मराकर मैंने अच्छा किया है इस प्रकार सोचने लगी।
सुग्राम में सुंदर नामक एक किसान रहता था। उसी समय वह घास लेने के लिए वन में आया था। रोते हुए उस बालक को देखकर करुणा से सुंदर ने उसे उठाया। हर्ष से उस बालक को पत्नी के हाथों देते हुए कहने लगा-वनदेवता ने हमें यह बालक दिया है। इसे अपने पुत्र की तरह पालना
और प्रयत्नपूर्वक इसकी रक्षा करना। वह भी बालक का अच्छी तरह खयाल रखती थी। रण में मिलने से बालक का नाम रणसिंह रखा। दूज के चन्द्र के समान वह प्रतिदिन बढ़ने लगा।
. कितने ही दिन बीतने के बाद किसी ने राजपुत्र मारने का सर्व स्वरूप राजा के आगे निरुपण किया। राजा अत्यंत दुःखी होकर सोचने लगा--इस दुष्ट रानी को धिक्कार है, जिसने पुत्ररत्न का विनाश कराया है। संसार स्वरूप को धिक्कार है, जहाँ प्राणी राग-द्वेष से ग्रसित होकर स्वार्थवश ऐसे कर्मों का आचरण करते है। लक्ष्मी, प्राण, चलित है, पाश रूपी यह गृहवास अस्थिर है। इसलिए प्रमाद छोड़कर धर्म में उद्यम करना चाहिए।
कहा गया है कि
संपदो जलतरगविलोला, यौवनं त्रिचतुराणि दिनानि । शारदाभ्रमिवचञ्चलमायुः, किं धनैः कुरुतधर्ममनिन्द्यम् ॥
जल तरंग के समान संपत्ति चपल है, तीन-चार दिन का यौवन है, शरद्-ऋतु के मेघ के समान आयु चंचल है। धन से क्या मतलब? अनिंदनीय धर्म में उद्यम करना चाहिए।
सा. नत्थिकला तं नत्थि ओसहं, तं नत्थि किंपि विनाणं । जेण धरिज्जइकाया, खज्जंति कालसप्पेण ॥
वह कला, औषध, ज्ञान कुछ भी नही है, जिससे कि काल-सर्प से भक्षण किए जाते काया का संरक्षण हो सके। इत्यादि वैराग्य परायण विचारों