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श्री उपदेश माला गाथा १४७-१४६ स्वजन भी अनर्थकर पुत्र कोणिक राजा की कथा
इस प्रकार पिता भी राज्यलोलुपतावश पुत्र को दुःखित करता है, इसीलिए पिता का स्नेह भी झूठा और स्वार्थपूर्ण है, यही इस कथा का तात्पर्य है ॥१४६।।
विसयसुहरागवसओ, घोरो भायाऽवि भायरं हणड़।
ओहाविओ यहत्थं, जह बाहुबलिस्स भरहवई ॥१४७॥
शब्दार्थ - 'विषयसुख के राग (आसक्ति) वश भयंकर शस्त्रादि से भाई भी अपने भाई को मार डालता है। जैसे भरतचक्रवर्ती अपने भाई बाहुबलि को मारने के लिए दौड़ा था; वैसे ही तुच्छ स्वार्थवश भाई भी अपने भाई को मारने दौड़ता है। अतः धिक्कार है ऐसे स्वार्थ को!' ।।१४७।।
___भरत-बाहुबलि का दृष्टांत पहले आ चुका है। कहने का तात्पर्य यह है कि भाई-भाई का स्नेह संबंध भी झूठा है ।।१४७।।
भज्जाऽवि इंदियविगारदोसनडिया, करेड़ पड़पावं ।
जह सो पएसिराया, सूरियकताइ तह यहिओ ॥१४८॥ - शब्दार्थ - 'इन्द्रियों के विकार दोष से बाधित पत्नी भी अपने पति के प्राणहरण कर लेती है। जैसे प्रदेशी राजा को उसकी पत्नी सूरिकान्ता रानी ने विष देकर मार डाला था।' ।।१४८।।
प्रदेशी राजा का दृष्टांत भी पहले आ चुका है। इसीलिए पत्नी का प्रेम भी विषयसुखजन्य होने से कृत्रिम और स्वार्थी है ।।१४८।।
सासयसुक्खतरस्सी, नियअंगस्समुन्मवेण पियपुत्तो । जह सो सेणियराया, कोणियरण्णा खयं नीओ ॥१४९॥
शब्दार्थ - शाश्वत सुख प्रास करने का अभिलाषी, भगवन् के वचनों में अनुरक्त और क्षायिकसम्यक्त्वी श्रेणिकराजा अपने ही अंगज और प्रियपुत्र कोणिक राजा द्वारा मार डाला गया था। अतः पुत्र स्नेह भी व्यर्थ है। ___ यहाँ प्रसंगोपात कोणिक राजा का उदाहरण दिया जा रहा है
कोणिक राजा की कथा उन दिनों धनधान्य से समृद्ध, धनाढय श्रेष्ठी लोगों और सुशोभित घरों से परिपूर्ण और नगरों में अग्रणी राजगृह नगर में भगवान् महावीर का परमभक्त श्रेणिक राजा राज्य करता था। उसके रूप-लावण्य-सम्पन्न, शील-सौजन्यगुणों से सुशोभित पतिभक्ता चिल्लणा नाम की पटरानी थी। चिल्लणा के गर्भ सीप में मोती की तरह एक ऐसा जीव आया, जिसने बहुत तप किया था और जिसका श्रेणिकराजा के साथ पूर्वजन्म का वैर था और उस गर्भ के प्रभाव से चिल्लणा रानी को तीसरे
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