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________________ निःस्नेही स्कन्दककुमार मुनि की कथा श्री उपदेश माला गाथा १४१ पराभूत न कर सके। यदि तूंने शुभ कर्म किया होता तो कौन तुझे पराभूत कर सकता! अब किसी पर व्यर्थ ही क्यों कोप करता है? क्योंकि तेरे पूर्वोपार्जित अशुभकर्म ही ऐसे हैं, जिनके उदय होने से दूसरे पर क्रोध करना व्यर्थ है! ऐसा विचार करके धैर्यशाली ज्ञानी पुरुष क्रोध न करके समभाव ही रखते हैं ।।१४०।। ___ अणुराएण जड़स्सऽयि, सियायपत्तं पिया धरावेइ । तहवि य खंदकुमारो, न बंधुपासेहिं पडिबद्धो ॥१४१॥ शब्दार्थ - 'स्कन्दककुमार मुनि पर अनुराग के कारण उसके पिता अपने पुत्र पर सेवकों द्वारा श्वेतछत्र कराते थें। परंतु वे मुनि बंधुवर्ग के स्नेहपाश में नहीं फंसे।' ॥१४१।। प्रसंगवश यहाँ स्कन्दककुमार मुनि की कथा दे रहे हैं स्कन्दककुमार मुनि की कथा श्रावस्ती नाम की महानगरी में समस्त रिपुमण्डल में धूमकेतु के समान कनककेतु नाम का राजा राज्य करता था। उसकी देवांगनासम अतिसुंदरी मलयसुंदरी रानी थी। उसके स्कन्दककुमार नाम का अतिप्रिय एक पुत्र था और आनंददायिनी सुनंदा नाम की एक पुत्री थी। यौवन-रूप-सम्पन्न होने पर राजा ने कांतिपुर नगर के राजा पुरुषसिंह के साथ धूमधाम से उसकी शादी कर दी। एक बार श्रावस्ती नगरी में विजय-सेनसूरि पधारें। स्कन्दककुमार भी सपरिवार उनके दर्शनार्थ पहुँचा। आचार्यश्री ने समस्त श्रोताजनों को धर्मोपदेश दिया- "भव्यजनो! यह संसार अनित्य है, शरीर नाशवान है, सम्पत्ति जल की तरंगों के समान चंचल है; जवानी पर्वत से निकली हुई नदी के प्रवाह समान है; इसीलिए कालकूट विष के तुल्य विषयसुखों के उपभोग से क्या लाभ है? कहा है सम्पदो जलतरङ्गविलोला, यौवनं त्रिचतुराणि दिनानि । शारदाभ्रमिव चञ्चलमायुः, किं धनैः कुरुत धर्ममनिन्द्यम् ।।१२०।। अर्थात् – 'सम्पदाएँ पानी की तरंगों की तरह चंचल है; जवानी भी सिर्फ तीन-चार दिनों की है, आयुष्य भी शरत्काल के बादलों की तरह क्षणिक है, फिर इतना धन बटोरकर क्या करोगे? निर्दोष धर्म की आराधना करो।' ॥१२०।। आगम में स्पष्ट कहा है सव्वं विलवियं गीयं, सव्वं नर्से विडम्बणा । सव्वे आभरणा भारा, सव्वे कामा दुहावहा ।।१२१।। अर्थात् - ये सारे संगीत विलाप रूप है;सारे नाटक विडम्बना रूप है; सारे 238
SR No.002364
Book TitleUpdeshmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherGuru Ramchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages444
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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