SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 260
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श्री उपदेश माला गाथा १३६ दृढ़प्रहारी मुनि की कथा प्रसंगवश दृढ़प्रहारी मुनि की कथा यहाँ दी जा रही है ढ़प्रहारी मुनि की कथा ___ माकन्दी महानगरी में समुद्रदत्त ब्राह्मण रहता था। समुद्रदत्ता उसकी पत्नी थी, एक दिन उसने एक पुत्र को जन्म दिया। उसके ग्रह ही ऐसे थे कि ज्योंज्यों उसकी उम्र बढ़ती गयी, त्यों-त्यों वह अधिकाधिक शैतानियां करने लगा। जवान होने तक तो उसने सैंकड़ों जुल्म कर दिये। जवानी आने के साथ ही हत्या, झूठ, चोरी, परस्त्रीगमन, भक्ष्याभक्ष्य का अविवेक, माता-पिता की अवज्ञा आदि हर पाप को खुलकर करने लगा। किसीकी हितकर बात भी नहीं सुनता था। नगरी में वह मतवाले सांड की तरह बेरोक-टोक जुल्म और ज्यादस्तियाँ करता हुआ स्वच्छन्द घूमा करता था। एक दिन राजा के पास उसकी शिकायत पहुँची। राजा ने उसे नगरी में रखने के लिए अयोग्य जानकर दुर्गपाल को बुलाकर आज्ञा दी"फूटा ढोल पीटते हुए अपराधों की घोषणा कर इस अधम ब्राह्मण को मेरी नगरी से निकाल दो।" नागरिकों ने भी इस सजा का समर्थन किया। फलतः दुर्गपाल ने राजाज्ञानुसार उसे नगरी से निकाल दिया। वह उद्दण्ड ब्राह्मण रोष से भन्नाता हुआ मन में द्वेषभाव की गांठ बांधकर नगरी से बाहर निकला और सीधा एक भिल्लपल्ली में पहुँच गया। वहाँ भिल्लपति ने उसके लक्षणों से उसे अपने कार्य के लिए कुशल व योग्य जानकर उसका स्वागत किया और कुछ ही दिनों में उसके पराक्रमों को देखकर उसे अपना उत्तराधिकारी (डाकुओं का सरदार) बना दिया। उसको भिल्लपति ने अपनी सारी सम्पत्ति भी सौंप दो। बहुत-से जीवों को एक ही झटके में निर्दयतापूर्वक मार डालने व उसके अत्यंत साहसिक कामों के कारण लोगों में वह 'दृढ़प्रहारी' के नाम से प्रसिद्ध हो गया। ___ एक दिन दृढ़प्रहारी बहुत से डाकुओं को साथ लेकर कुशस्थल नगर लूँटने के लिए चला। उस नगर में देवशर्मा नाम का एक अत्यंत दरिद्र ब्राह्मण रहता था। उसने बड़ी कठिनाई से सामग्री लाकर आज खीर बनाई थी। खीर की हंडिया नीचे रखकर वह नदी पर नहाने के लिए चला गया। इनमें से एक लूटेरा इसी ब्राह्मण के घर में घुसा। उसने और कुछ न देखकर खीर का बर्तन उठाया। यह देखकर उस ब्राह्मण का लड़का रोते-रोते अपने पिता को खबर देने नदी पर पहुँचा। भूख से छटपटाता हुआ वह ब्राह्मण भी यह सुनते ही झटपट दौड़ा हुआ घर आया। तब तक लूँटेरा खीर की हंडिया लेकर भाग चुका था। पर देवशर्मा ने क्रुद्ध होकर लोहे की बड़ी अर्गला उठाई और उस लूटेरे को मारने दौड़ा। कुछ ही दूर जाने 233
SR No.002364
Book TitleUpdeshmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherGuru Ramchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages444
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy