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________________ श्री उपदेश माला गाथा ११४-११५ वरदत्तमुनि की कथा, स्त्री एवं गृहस्थ संसर्ग एक दिन चंडप्रद्योत ने अंगारवती रानी से एकांत में पूछा-"तुम्हारे पिताजी के पास थोड़ी-सी सेना थी, फिर भी उन्होंने मुझे कैसे जीत लिया?" अंगारवती ने इसका रहस्योद्धाटन करते हुए कहा- "नाथ! नागमंदिर में एक मुनि बिराजमान थे। उनके बताये हुए निमित्त-(भविष्य) कथन के प्रभाव से मेरे पिताजी की विजय हुई।'' चंडप्रद्योत के मन में निमित्त बताने वाले मुनि को देखने की भावना पैदा हुई और वह स्वयं प्रेरणा से मुनि वरदत्त के पास पहुँचा और उन्हें उपहास की भाषा में संबोधित करते हुए यों कहा- "हे नैमित्तिक मुनि! मैं आपको वंदन करता हूँ।" अपने लिए नैमित्तिक शब्द सुनकर वरदत्तमुनि ने विचार किया"मैंने कौन-सा और कब निमित्त (भविष्य) बताया है?" सोचते-सोचते उन्हें खयाल आया कि जिस समय घबराए हुए कुछ बच्चे मेरे पास आये थे, उस समय मैंने उन्हें कहा था- 'डरो मत। तुम्हें किसी प्रकार का भय नहीं है।' सचमुच, इस प्रकार निमित्त कथन करना मेरे लिये दोष जनक था। वरदत्त-मुनि ने यथार्थ रूप से इस दोष की आलोचना की और शुद्ध होकर निर्दोष रूप से चारित्राराधना की और सद्गति में पहुंचे। ___इसीलिए निर्दोष चारित्राराधन करने वाले मुनि के लिए गृहस्थों का थोड़ा-सा भी संसर्ग हानिकारक होता है; यही इस कथा का मुख्य उपदेश है।।११३।। सब्भायो वीसंभो, नेहो रइवइयरो य जुबइजणे । सयणघरसंपसारो, तवसीलवयाई फेडिज्जा ॥१४॥ __ शब्दार्थ - युवतियों के सामने सद्भावपूर्वक अपने हृदय की बात कहना, उन पर अत्यंत विश्वास रखना, उनके प्रति स्नेह (मोहजन्यसंसर्ग) रखना, कामकथा करना और उनके सामने अपने स्वजन सम्बंधियों की, अपने घर आदि की बार-बार बातें करना साधु के तप (उपवासादि), शील (ब्रह्मचर्यादि गुण) तथा महाव्रतों का भंग करती है ।।११४॥ ___ जोइस-निमित्त-अक्खर-कोउआएस-भूइकम्मेहिं । करणाणुमो-अणाहि अ, साहुस्स तवक्खओ होड़ ॥११५॥ शब्दार्थ - ज्योतिषशास्त्र की बातें बताने, निमित्त-कथन करने, अक्षर (आंक, फीचर, सट्टा या फाटका) बताने से, कुतूहल पैदा करने वाले चमत्कार (जादू, तमाशा या खेल) बताने, आदेश (तेजी-मंदी या यह बात इसी तरह होगी) करने से या भूतिकर्म करने (राखं, वासक्षेप आदि को मंत्रित करके देने) से या इस प्रकार के 215
SR No.002364
Book TitleUpdeshmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherGuru Ramchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages444
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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