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________________ श्री उपदेश माला गाथा ११३ वरदत्तमुनि की कथा वापिस लौट गये। इस पर वरदत्तमंत्री सोचने लगा - " यह मुनि आहार के लिए पधारें थें; शुद्ध निर्दोष आहार था, फिर भी इन्होंने क्यों नहीं लिया?" मंत्री यों विचार कर ही रहा था कि नीचे गिरी हुई खीर की बूंद पर एक मक्खी आकर बैठी। मक्खी को देखते ही एक छिपकली आयी। छिपकली पर झपटने के लिए एक कौआ आया और कौए को देखकर बिल्ली आयी। बिल्ली को देखकर एक कुत्ता दौड़ा हुआ आया। कुत्ते को देखकर मोहल्ले के सब कुत्ते वहाँ इकट्ठे हो गये और एक दूसरे को भौंकने और नोचने लगे। घर का नौकर डंडा लेकर दौड़ा और कुत्तों को जोर से डंडा मारा। इस पर मोहल्ले के लोग बिगड़े। उन्होंने घर के कुत्ते को मार डाला। इस पर घर के नौकर और मोहल्ले के लोगों में परस्पर गालीगलोज और हाथापाई होने लगी। झगड़ा बढ़ते-बढ़ते गुस्से में आकर दोनों पक्ष के लोगों ने तलवारें खींच ली और जमकर युद्ध होने लगा। यह तमाशा देखकर वरदत्त मंत्री गहरे चिंतन में डूब गया - " धन्य है मुनिवर को, जिन्होंने भविष्य में ऐसे उपद्रव होने की आशंका से शुद्ध आहार भी ग्रहण नहीं किया। जिनेश्वरदेव के इस धर्म को भी धन्य है, जिसमें ऐसे पवित्र महापुरुष हैं। ऐसे निःस्पृह जंगमतीर्थरूप मुनिवर का अब मिलन कहाँ और कैसे होगा ?" इस प्रकार ऊहापोह करते-करते उन्हें जातिस्मरणज्ञान उत्पन्न हो गया। और उन्हें अपने पूर्वजन्म का दीक्षाग्रहण, शास्त्राध्ययन आदि की सारी घटनाएँ चलचित्र की तरह दिखाई देने लगीं। उन्होंने मन ने यह निश्चय कर लिया - - ' अब मुझे मुनिदीक्षा ग्रहण करके अपने जीवन को सार्थक करना है। फलतः देव ने मुनिवेश दिया। उस वेश को धारण करके स्वयंबुद्ध वरदत्तमुनि विहार करते-करते सुसुमार नगर में पधारे और वहाँ के नागदेव मंदिर में कायोत्सर्गस्थ होकर खड़े रहे। उस समय सुसुमारपुर के राजा धुंधुमार की रूपवती पुत्री अंगारवती ने किसी योगिनी के साथ विवाद किया, उसमें योगिनी हार गयी। इसके कारण योगिनी को क्रोध उत्पन्न हुआ। उसने अंगारवती का हूबहू चित्र बनाकर चण्डप्रद्योत राजा को दिखाया। चित्र देखते ही चण्डप्रद्योत उसे पाने के लिए लालायित हो उठा। योगिनी ने भी राजा के सामने बढ़ा-चढ़ाकर उसके रूप का वर्णन किया। चंडप्रद्योत ने धुंधुमार राजा के पास दूत भेजकर अंगारवती की मांग की। धुंधुमार राजा ने दूत को उत्तर दिया - 'पुत्री मन की प्रसन्नता से दी जाती है, बलात्कार से नहीं।' दूत के मुख से धुंधुमार का उत्तर सुनकर चण्डप्रद्योत क्रोध से आगबबूला हो उठा। वह बड़ी भारी सेना लेकर सुसुमारपुर पहुँचा और उसे चारों ओर से घेर लिया। धुंधुमार राजा के पास बहुत ही थोड़ी सेना थी; इसीलिए युद्ध 213
SR No.002364
Book TitleUpdeshmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherGuru Ramchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages444
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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