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________________ श्री उपदेश माला गाथा १०८ बलदेव मुनि, रथकार और मृग की कथा इस भयानक जंगल में हम दोनों अकेले हैं।' जब हिला-हिलाकर बार-बार पुकारने पर भी श्रीकृष्ण नहीं उठे तो मरे हुए होने पर भी मोहवश उन्हें जलपिपासा के कारण मूर्छित और जीवित समझकर बलदेवजी ने कंधे पर उठाया और चल पड़े। संसार में तीन बातें सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण मानी जाती हैं। वे इस प्रकार हैं तीर्थंकराणां शाम्यत्वं सपत्नीवैरमेव च । वासुदेव-बल-स्नेह: सर्वेभ्योऽप्यधिकं मतम् ॥१०१।। अर्थात् - तीर्थंकरों की समता, सौतों का वैर और वासुदेव-बलदेव का परस्पर स्नेह ये तीनों बातें दुनिया में सब बातों से बढ़कर मानी जाती हैं ॥१०१॥ ___अपने मृत भाई श्रीकृष्ण के शब को कंधे पर उठाए बलदेव जगह-जगह घूम रहे थे। वे भाई के मोह में इतने डूबे हुए थे, उन्हें कोई छोड़ देने को कहता तो भी नहीं छोड़ते थे। एक दिन सिद्धार्थ देव बलदेवजी की यह मोहचेष्टा देखकर इसे दूर करने के लिए युक्ति और देवमाया से एक जगह घानी में रेत डाल कर तेल निकालने बैठ गया। बलदेवजी ने जब उसे कहा कि इस रेत में से तेल निकालने का परिश्रम व्यर्थ है, तब उसने बलदेवजी से कहा-'मरे हुए व्यक्ति को कन्धे पर उठाए फिरने का तुम्हारा श्रम भी व्यर्थ है।' यह सुन बलदेवजी उस पर बिगड़े और तलवार निकालकर मारने दौड़े-'अरे दुष्ट! तूं मेरे भाई को मरा कहता है। वह मरा नहीं है। होश में आते ही अभी बोल उठेगा।' उसके बाद उस देव ने पर्वत की शिला पर कमल बोने का दृश्य दिखाया तो उसे देख बलदेवजी बोले'अरे मूर्ख! इस शिला पर कहीं कमल ऊग सकता है?' देव ने व्यंग करते हुए कहा-'यदि मरा हुआ तुम्हारा भाई खड़ा होकर बोल जाय तो इस शिला पर भी · कमल ऊग सकता है।' मंगर बलदेवजी पर मोह का पर्दा इतना गहरा पड़ा हुआ था कि उन्हें जरा भी प्रतिबोध न हुआ कि मेरा भाई मर गया है। वे अपनी ही धुन में श्रीकृष्णजी के शब को उठाये ६ महीने तक घूमते रहे। आखिरकार श्रीकृष्णजी के शरीर में विरूपता देखी तब उनको मृत समझकर छोड़ दिया। सिद्धार्थदेव ने उस शब को समुद्र में बहा दिया। उसके पश्चात् बलदेव बहुत विलाप करने लगे। भगवान् अरिष्टनेमि ने उन्हें प्रतिबोध देने के लिए एक चारण मुनि को भेजा। उनके द्वारा प्रतिबोध पाकर विरक्त होकर बलदेवजी ने उनसे दीक्षा ले ली। पहाड़ पर रहकर उग्र तपश्चर्या करने लगे। एक बार वे अपने मासक्षपण तप के पारणे के लिए नगर में जा रहे थे; तभी अकस्मात् उनके रूप को देखकर मोहित हुई एक स्त्री को कुंए से पानी भरने के लिए घड़े में रस्सी डालने के बजाय भ्रांति से अपने पुत्र के गले में रस्सी डालते - 207
SR No.002364
Book TitleUpdeshmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherGuru Ramchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages444
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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