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श्री उपदेश माला गाथा ६१
श्री मैतार्यमुनि की कथा वचन को भूल गये और मेरा कहना नहीं माना। इसी का फल तुम्हें चखाया है। देखा, कैसा तिरस्कार हुआ तेरा? इसीलिए यदि तूं अपना भला चाहता हो मेरा कहना मान ले और चारित्र ग्रहण कर ले।" मैतार्य ने कहा-"अब मैं दीक्षा कैसे स्वीकार करूँ? क्योंकि तुमने मुझे इतना बदनाम कर दिया है कि मैं कहीं का न रहा। लोगों में तुमने मुझे चांडाल के नाम से प्रसिद्ध कर दिया। अब यदि आप फिर प्रतिष्ठा पुनः बढ़ा दें और सेठ मुझे अपने पुत्र रूप में स्वीकार कर ले तथा राजा श्रेणिक मुझे अपनी कन्या दे दें तब तो मैं चारित्र अंगीकार कर लूंगा।" मित्रदेव ने उसी प्रकार कर देना कबूल किया।
फलतः देव ने पहला काम यह किया कि चाण्डाल के घर में गंदी विष्ठा के बदले रत्नों की विष्ठा (मींगणियाँ) करने वाला बकरा बांध दिया। देवप्रेरणा से चाण्डाल (मैतार्य के पिता) ने रत्नों का थाल भरकर लगातार तीन दिन तक श्रेणिक राजा को रत्न भेंट दिये। यह देख मंत्री अभयकुमार ने पूछा- "तेरे यहाँ इतने रत्न कहाँ से आये?" चांडाल ने कहा- "मेरे यहाँ एक बकरा है, जो रत्नों की मींगणियाँ करता है।" "फिर तूं इन रत्नों को भेंट किसलिये कर रहा है?" अभयकुमार ने प्रश्न किया। चांडाल- "मेरे पुत्र को राजाजी अपनी पुत्री दे दें, इसीलिए मैं यह भेंट कर रहा हूं।" राजा ने कहा- "यह कैसे हो सकता है?" अभयकुमार ने चांडाल से बकरा राजमहल में ले आने का कहा। चांडाल ने बकरां लाकर राजमहल में बांध दिया, लेकिन वह यहाँ रत्नों की मींगणियों के बदले दुर्गन्धित विष्टा करने लगा। इससे आश्चर्यचकित होकर अभयकुमार ने कहा- 'हो न हो इसमें कोई देवप्रभाव मालूम होता है। अन्यथा, चांडाल के द्वारा राजपुत्री की • याचना कैसे सम्भव है? इसकी भलीभांति परीक्षा करनी चाहिए। जो कार्य मनुष्य के बलबूते से परे का हो, उस कार्य को यदि कोई मनुष्य करता हो तो उसमें देव का प्रभाव अवश्य होना चाहिए।" अतः काफी सोच-विचारकर अभयकुमार ने चांडाल से कहा-"यदि इस राजगृही के चारों ओर नया सोने का किला बना दो
और वैभारगिरि पर्वत पर पुल बांध दो एवं गंगा, यमुना, सरस्वती और क्षीरसागर इन चारों को उसके नीचे प्रवाहित कर दो और उससे तुम्हारे पुत्र को स्नान करा दो तो राजा श्रेणिक उसे अपनी पुत्री दे देंगे।" देव के प्रभाव से अभयकुमार के कहने के अनुसार रातभर में ही यह सब काम हो गया। प्रातः उस जल से चांडालपुत्र-मैतार्य-को स्नान करा कर पवित्र हो जाने के बाद राजपुत्री से विवाह सम्पन्न हो गया। इसके बाद आठ वणिकों ने भी अपनी-अपनी कन्याओं की शादी मैतार्य के साथ कर दी। इस प्रकार ९ कन्याओं के साथ मैतार्य का धूमधाम से
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