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________________ तामलितापस की कथा श्री उपदेश माला गाथा ८२ शब्दार्थ - तामलितापस ने साठ हजार वर्ष तक छट्ठ (दो उपवास) तप किया। पारणे के दिन वह इक्कीस बार जल से भोजन को धोकर पारणा करता था; परंतु अज्ञानतप होने से वह अल्पफल वाला हुआ ।।८१।। भावार्थ - यदि यह तप दयायुक्त होता तो उसका फल मुक्तिदायी होता। इसीलिए जिनेश्वर भगवान् की आज्ञा से युक्त तप ही प्रमाण है। तामलीतापस के द्वारा इतना महान् तप करने पर भी उसे तुच्छ देवगति मिली। प्रसंगवश तामलितापस का दृष्टांत दे रहे हैं तामलितापस की कथा तामलिप्ती नगर में तामलि नाम का एक सेठ रहता था। उसने एक दिन अपने पुत्र को घर का सारा भार सौंपकर वैराग्यमय होकर तापसी दीक्षा ले ली, . और नदी के किनारे कुटिया बनाकर रहने लगा। वह दो-दो (छट्ठ-छट्ठ) उपवास के बाद पारणा करने लगा। वह पारणे के दिन भी जो आहार लाता था, उसे नदी के सचित्त जल से इक्कीस बार धोकर नीरस बनाकर खाता था। इस तरह साठ हजार वर्ष तक उसने दुष्कर अज्ञान तप किया। और अंतिम समय में अनशन किया। उस समय बलीन्द्र का च्यवन (आयुष्य पूर्ण) होने से बलिचंचा की राजधानी के असुरों ने आकर अनेक प्रकार के नाटक और वैभव विलास बताकर तामलितापस से विज्ञप्ति की-'स्वामिन्! आप नियाणा (निदान) करके हमारे स्वामी बनों। अब हम स्वामीरहित हैं।' इस तरह उन्होंने तीन बार कहा, फिर भी तामलितापस ने अंगीकार नहीं किया, और निदान भी नहीं किया, अल्प-कषायी होने से तथा अत्यंत कष्टसहन करने के फलस्वरूप आयुष्य पूर्णकर वह ईशान देवलोक में इन्द्ररूप में उत्पन्न हुआ और वहाँ उसी समय सम्यक्त्व प्राप्त किया। । इसीलिए ज्ञानपूर्वक तप करना ही मोक्ष का कारण है। अतः चाहे थोड़ासा भी तप करे, दया और ज्ञान से युक्त होकर करे; तामलितापस के समान अज्ञान और हिंसा से युक्त होकर नहीं। यही इस कथा का सार है ॥८१।। . छज्जीवकायवहगा, हिंसगसत्थाई उवइसंति पुणो । सुबहुँ पि तवकिलेसो, वालतवस्सीण अप्पफलो ॥८२॥ शब्दार्थ - छह जीवनिकाय का वध करने वालों का, हिंसा की प्ररूपणा करने वाले शास्त्रों का उपदेश देने वालों और बाल-तपस्वियों का अतिप्रचुर तपक्लेश भी अल्पफल देने वाला होता है ।।८।। 168
SR No.002364
Book TitleUpdeshmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherGuru Ramchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages444
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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