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श्री स्थूलभद्र मुनि की कथा
श्री उपदेश माला गाथा ५६
अरिष्टनेमि, जम्बूकुमार और सुदर्शन सेठ के बाद मुझे रणक्षेत्र में पछाड़ने वाला यह चौथा मुनि होगा || ७८ ॥
श्री नेमितोऽपि शकडालसुतं विचार्य, मन्यामहे वयममुं भटमेकमेव । देवोऽद्रिदुर्गमधिरुह्य जिगाय मोहं, यन्मोहनालयमयं तु वशी प्रविश्य ॥ ७९ ॥
अर्थात् - विचार करने पर शकडाल पुत्र - श्रीस्थूलभद्र मुनि को हम श्रीनेमिनाथ भगवान् से भी अधिक अद्वितीय योद्धा समझते हैं। क्योंकि श्री नेमिनाथ भगवान् ने गिरनार पर्वत के दुर्ग पर चढ़कर वहाँ मोह को जीता था, लेकिन इस अनोखे इन्द्रियजेता ने तो मोह के घर में घुसकर उसका मानमर्दन किया ॥७९॥
पुफ्फं फलाणं च रसं, सुराई महिलयाणं च । जाणंतो जे विरइया, ते दुक्कर - कारए वंदे ॥८०॥
अर्थात् फूल, फलों का रस, शराब, मांस आदि का स्वाद एवं महिलाओं के विलास को जानते हुए भी जो इनसे विरक्त रहते हैं, ऐसे दुष्करकार्य करने वाले मुनियों को मैं वंदन करती हूँ ||८०||
इस प्रकार कोशा वेश्या ने स्तुति पूर्वक स्थूलभद्र मुनि का परिचय देकर अंत में कहा—''मेरे साथ उनका १२ वर्षों का पुराना घनिष्ठ परिचय था, और मेरे यहाँ सब प्रकार के सुख-साधनों के बीच रहते हुए भी वे जरा भी चलायमान न हुए, अत: इसे ही मैं दुष्करकार्य कहती हूँ। अगर आपको दुष्कर कार्य कर बताना हो तो यही करके बताओ।"
वेश्या के स्तुतिमय तथा वैराग्यप्रद कथन से रथकार का भी अंतर्हृदय जाग उठा। उसने उसी समय मन में संकल्प किया और स्थूलभद्र मुनि के पास जाकर मुनि दीक्षा ले ली।
स्थूलभद्र मुनि ने भी दीक्षा के बाद १४ पूर्वों में से १० पूर्वों का अर्थसहित और शेष ४ पूर्वों का मूलसूत्र रूप में अध्ययन किया। यानी ये अंतिम चतुर्दशपूर्वधारी मुनि हुए। इन्होंने अनेक व्यक्तियों को प्रतिबोध दिया। अपनी निर्मल कीर्ति जगत् में फैलाई, सभी लोगों में प्रसिद्धि प्राप्त की। ब्रह्मचर्य का अनोखा आदर्श जगत् के सामने रखा। ये ३० वर्ष तक गृहवास में रहे, २४ वर्ष तक साधारण मुनि जीवन में और ४५ वर्ष तक युगप्रधानपद पर विभूषित रहे। इस तरह कुल ९९ वर्षों का आयुष्य पूर्ण करके श्रमण भगवान् महावीर के निर्वाण से २१५ वर्ष पश्चात् यह स्वर्गवासी हुए।
स्थूलभद्र मुनि ने जैसे दुर्धर ब्रह्मचर्यव्रत में सुदृढ़ रहकर आगामी ८४
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