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________________ श्री उपदेश माला गाथा ५४ नंदीषेण की कथा तप करना ही श्रेयस्कर है।' इसी विषय में आगे की गाथा में कहते हैंप्रसंगवश यहाँ नंदीषेण की कथा दी जा रही है नंदीषेण की कथा मगधदेश में नंदी नाम का एक गाँव था। वहाँ चक्रधर नामक चक्र को धारण करने वाला एक दरिद्र ब्राह्मण रहता था। उसकी पत्नी का नाम सोमिला था। उनके नंदीषेण नाम का एक पुत्र हुआ। पुत्र का जन्म होते ही उसके मातापिता चल बसे। अत: नंदीषण का मामा उसे अपने घर ले आया। वहीं उसने नंदीषण को पालपोस कर बड़ा किया। नंदीषेण अत्यंत कुरूप और बेडौल था। उसका सिर बड़ा था, पेट भी ढोल जैसा था, नाक टेढ़ी थी, शरीर बौना था, आँखें बिगड़ी हुई थी, कान टूटे से थे, केश पीले-पीले थे, पैर से लंगड़ा, कुबड़ा और घिनौना था। घर में उसे कोई चाहता नहीं था, दुर्भाग्य ने मानो यहीं आकर अपना डेरा जमाया था। कोई भी महिला उससे प्यार नहीं करती थी। वह सबका घृणापात्र था। जो भी उसे देखता, कहता-"अरे दुर्भाग्यशिरोमणी! तूं क्यों दूसरे के यहाँ चाकरी (दासता) करता है? परदेश जा और धन कमाकर अपनी शादी क्यों नहीं कर लेता? कहावत है- 'स्थानान्तरितानी भाग्यानि' (भाग्य दूसरे स्थान पर ही खुलता है)।' लोगों की बातें सुन-सुनकर उसे अपने मामा के यहाँ रहना और गुलामी करना अखरने लगा। उसने मन ही मन निश्चय कर लिया कि वह परदेश जाकर ही अपना भाग्य अजमाएगा। जब मामा के सामने उसने अपनी यह इच्छा प्रकट की तो मामा ने फुसलाते हुए कहा-"भाई! तूं क्यों व्यर्थ ही परदेश जा रहा है? कर्म तो वहाँ भी तेरा पीछा नहीं छोड़ेंगे। इससे बेहतर यह है कि तूं मेरे घर में ही रह। मेरी सात कन्याएँ हैं; इनमें से एक के साथ तेरा विवाह कर दूंगा। फिर तुझे परदेश जाने की क्या जरूरत है?" नंदीषेण ने मामा की बात मान ली और वहीं रहने लगा। एक दिन मामा ने नंदीषण को अपनी सातों कन्याएँ बताई और उससे कहा-"इनमें से जो कन्या तुझे पसंद हो या जो कन्या तुझे चाहे, उसी के साथ तेरी शादी कर दूंगा।" परंतु कन्याओं ने जब यह सुना तो सबकी सब एक स्वर से बोल उठी-"पिताजी! हमें आत्महत्या करके मर जाना स्वीकार है; लेकिन इस कालेकलूट, बेडौल व भाग्यहीन के साथ हम कदापि शादी नहीं करेंगी।" यह सुनकर नन्दीषेण मन ही मन सोचने लगा-"मामाजी ने मेरे लिए कोई कसर न रखी, परंतु मेरे कर्मों का दोष है कि कोई मुझे यहाँ चाहता नहीं। जब तक ये अशुभ कर्म भोगे नहीं जायेंगे, तब तक शुभ कर्म (भाग्य) का उदय - 137
SR No.002364
Book TitleUpdeshmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherGuru Ramchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages444
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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