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________________ श्री उपदेश माला गाथा ४२ स्कन्दकाचार्य व उनके शिष्यों की कथा नगर जाऊं।" भगवन् ने कहा-"आचार्य! तुम वहाँ जाओ भले ही। लेकिन वहाँ तुम सब पर प्राणांतक उपसर्ग आयेंगे।" प्रभो! मैं उस उपसर्ग के निमित्त से आराधक होऊंगा या विराधक?" स्कन्दकाचार्य ने उत्सुकतावश पूछा। भगवान् ने कहा-"तुम्हारे सिवाय सब आराधक होंगे?" "प्रभो! तब तो मुझे खुशी है कि मेरी सहायता से मेरे सिवाय सभी मुनि आराधक होंगे। इसीमें मैंने सब कुछ भर पाया, यही समझूगा।" यों कहकर भगवान् से आज्ञा प्राप्त करके स्कन्दकाचार्य ५०० साधुओं के साथ वहाँ से विहार करके कुम्भकारकटक नगर में पहुँचे। पालक पुरोहित ने जब यह जाना कि स्कन्दकाचार्य आ रहे हैं तो उसने पूर्व वैर का बदला लेने की दृष्टि से मुनियों के नगर में आने के पहले ही उनके रहने के योग्य वनभूमि में गुप्तरूप से अनेक हथियार गड़वा दिये। आचार्य स्कन्दक निःशंकभाव से नगर के बाहर वनभूमि में ठहरें। दण्डक राजा को उनके आगमन का पता लगते ही वह और नागरिक लोग उनके दर्शन को उमड़ पड़े। आचार्यश्री ने क्लेशनाशक धर्मोपदेश दिया, संसार की अनित्यता का स्वरूप बताया; जिसे सुनकर राजा और प्रजाजन बड़े आनन्दित हुए। दुष्ट पालक ने उचित मौका देखकर एकान्त में राजा दण्डक के कान भरे- "स्वामिन्! यह स्कन्दकाचार्य साधु मालूम नहीं होता; यह तो पाखण्डी है; अपने साधुधर्म के आचरण से भ्रष्ट हो गया है। हजार-हजार सुभटों के साथ युद्ध कर सके ऐसे ५०० पुरुषों को यह साथ में लाया है। आपके साथ युद्ध में जीतकर यह आपका राज्य हथियाने के लिए आया है।" दण्डकराजा-"यह बात तुम कैसे जानते हो?" पालक ने कहा-"महाराज! हाथकंगन को आरसी क्या? मैं आपको इसकी धूर्तता का प्रत्यक्ष प्रमाण बताता हूँ| आप मेरे साथ चलकर देख लें!' राजा को पालक की बात कुछ वजनदार लगी। पालक ने चालाकी से स्कन्दकाचार्य आदि सभी साधुओं को दूसरे वन में भेज दिये, और उनके जाने के बाद वह राजा को साधु जहाँ ठहरे हुए थे; उसी वनभूमि में ले गया एवं जहाँ पहले उसने शस्त्र गाड़े थे, वहाँ से खोदकर निकाले और राजा को बताये। शस्त्रों को देखते ही राजा क्रोध से आगबबूला हो उठा। राजा ने तुरंत पालक को अनुमति दे दी-"तुम इन्हें जो भी दण्ड देना चाहो, दे सकते हो; तुम्हें खुल्ली छूट है। पालक की बाछे खिल गयी। राजा तो इतना कहकर अपने महल में लौट आया। लेकिन दुष्ट पालक ने अपना वैर वसूल करने के लिए मन में युक्ति सोचकर मनुष्यों को पीलने वाला एक महायंत्र (कोल्हू) 1. एक कथानक में भगवान के मौन रहने का कथन है। - 117
SR No.002364
Book TitleUpdeshmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherGuru Ramchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages444
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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