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________________ श्री उपदेश माला गाथा ३७ जम्बूस्वामी की कथा अपने घर भेज दिया। स्वयं घर के अंदर सोये हुए पति को जगाकर मधुरस्वर में कहने लगी- "प्राणेश! यहाँ मुझे नींद नहीं आ रही है। अतः यहाँ से चलिए; हम आज अशोकवृक्ष के नीचे जाकर सोयेंगे।" पति ने सरलभाव से उसकी बात मान ली। दोनों वहाँ से चलकर अशोकवृक्ष के नीचे आकर सो गये। कुछ ही देर हुई थी कि दुर्गिला ने गाढ़ निद्रा में सोये हुए अपने पति को जगाया और कहने लगी"स्वामिन्! गजब हो गया! आपके यहाँ यह कैसा विचित्र रिवाज है कि श्वसुर सोई हुई अपनी पुत्रवधू के पैर में पहने हुए नूपुर निकाल ले जाय। मेरे साथ आज ऐसी ही घटना हुई है।" यह सुनते ही देवदिन को अपने पिता पर बहुत गुस्सा आया। उसने सुबह होते ही अपने पिता को आड़े हाथों ले लिया-"पिताजी! आपकी यह बात बहुत ही अनुचित है कि जब मैं अपनी पत्नी के साथ सोया हुआ था तो आप चुपके से आकर उसके पैर से नूपुर निकालकर ले गये। पुत्रवधू के गुह्य को देखना श्वसुर के लिए सरासर नीति-विरुद्ध है।'' पिता ने कहा- "बेटा! यों ही स्त्री की बातों के बहकावे में न आओ। तुम्हें रहस्य का पता नहीं है। मैंने तुम्हारी पत्नी को अपनी आँखों से पराये पुरुष के साथ सोये हुए देखी है। इसीलिए मैंने ऐसा किया था। बाद में इसने अपने दुर्गुण को छिपाने के लिए तुझे बहकाकर दूसरी जगह सोने के लिए ले गयी। और वहाँ जाकर तुम्हें यह बात कही। अत: यह सब इसकी कपटक्रिया है।" दुर्गिला जोश में आकर तुरंत बोली- "यह बात बिलकुल झूठी है। मैं अपनी सच्चाई का सबूत देवता के सामने दूंगी।" यों कहकर अपने परिवार और पड़ौसियाँ को साथ लेकर नगर के बाहर किसी प्रभावक यक्ष के सामने अपने सत्य को प्रमाणित करने के लिए वह चल पड़ी। लोगों की भीड़ इसे देखने के लिए उमड़ पड़ी। पूर्व संकेत के अनुसार रास्ते में उसका वह यार भी पागलों का-सा वेष बनाये हुए आ मिला और एकदम दुर्गिला से चिपट गया। लोगों ने उसे पागल समझकर कुछ न कहा। उसे दूर हटाकर दुर्गिला यक्ष के मंदिर में गयी। यक्ष की पूजा करके उसके सामने उच्चस्वर से बोली- "हे देव! इस पागल पुरुष तथा मेरे पति के सिवाय किसी अन्य पुरुष से मेरा सम्बन्ध रहा हो तो मुझे उचित सजा देना।" यक्ष सुनकर विचार में पड़ गया कि इसका यह सत्य (सच्चाई सिद्ध करने के लिए रचा गया जाल) असत्यरूप है। अतः इसका क्या किया जाय?" इसी बीच दुर्गिला उत्तर की राह देखे बिना ही यक्ष की जंघा के बीच से होकर निकल गयी। इससे लोगों को उस पर प्रतीति हो गयी। लोगों में उसकी प्रशंसा और उसके श्वसुर की निंदा होने लगी। तब से उसका नूपुरपंडिता नाम प्रसिद्ध हो गया। यह देखकर देवदत्त की निंद उड गयी। राजा ने उसे पहरेदार रखा। रानी का महावत - 93
SR No.002364
Book TitleUpdeshmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherGuru Ramchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages444
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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