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________________ जम्बूस्वामी की कथा श्री उपदेश माला गाथा ३७ जम्बूकुमार कहने लगे-'प्रिये! इस जीव ने अनंतबार देवलोक के भोगों का अनुभव किया है, फिर भी जब इसे तृप्ति नहीं हुई; तब भला मनुष्यलोक के सुख उनके सामने किस बिसात में हैं? अंगारदाहक के समान उसे भी तृप्ति नहीं होती। एक अंगरदाहक (कोयला बनाने वाला) था। एक दिन वह कोयले बनाने के लिए जंगल में गया। धूप बहुत तेज पड़ रही थी। दोपहर को उसे बहुत जोर की प्यास लगी। उसके पास पानी के जितने बर्तन भरे हुए थे, उन सबका पानी वह पी गया। पानी के सभी बर्तन खाली कर देने पर भी उसकी प्यास नहीं बुझी। निदान वह एक पेड़ की छाया में सो गया। नींद में उसने एक स्वप्न देखा कि वह सभी समुद्रों, नदियों और तालाबों का पानी पी गया, फिर भी प्यास इतनी तीव्र थी कि वह मिटी नहीं। आखिरकार एक जगह छोटीसी तलैया में कीचड़ से सना गंदा पानी था, उसे पीने लगा। मगर उसकी तृप्ति नहीं हुई।" जिसे समुद्रजल से तृप्ति नहीं हुई, उसे कीचड़ वाले पानी से तृप्ति होती भी कहाँ से? जैसे उस अंगारदाहक को समुद्रजल से तृप्ति नहीं हुई तो कीचड़ वाले जल से तृप्ति होनी कठिन थी, वैसे ही समुद्रजल के समान देवलोक के दिव्य सुखभोगों को लाखों-करोड़ों वर्ष सागरोपमों तक वहाँ रहकर भोगने के बाद भी जब तृप्ति नहीं हुई तो पंकमिश्रित जल के समान मनुष्य शरीर के अल्प सुखभोगों से तृप्ति कैसे हो सकती है?" यह सुनते ही तीसरी पत्नी पद्मसेना बोली- "बिना विचार किये सहसा किसी काम को कर बैठने से नूपुरपण्डिता के कथानक में रानी के समान पश्चात्ताप करना होगा।" बीच में ही प्रभव ने पूछा- "रानी को कैसे पश्चात्ताप करना पड़ा? जरा खोल कर कहिए।" पद्मसेना कहने लगी "राजगृह नगर में देवदत्त नामक एक सुनार रहता था। उनके देवदिन्न नाम का एक पुत्र था। उसकी पत्नी का नाम दुर्गिला था। दुर्गिला एक बार नदी पर वस्त्र धोने गयी थी। एक पुरुष पर, प्रेम हो गया। उसको कृष्ण पक्ष की पंचमी को मध्य रात्रि में पीछे के द्वार से आने का संकेत उसकी भेजी हुई तापसी के साथ किया। उसका यार आया। परस्पर विनोद करते हुए वे दोनों रात को शय्या पर सो गये। संयोगवश दुर्गिला का श्वसुर देवदत्त रात को पेशाब करने के लिए वहाँ से होकर जा रहा था, तभी उसने अपनी पुत्रवधू को परपुरुष के साथ सोयी देखकर चुपके से उसके दांये पैर का नूपुर (नेवर) निकाल लिया। जागने पर दुर्गिला को अपने दांये पैर के नूपुर गायब होने का पता चला तो उसने सारा अनुमान लगा लिया कि श्वसुर ने ही नूपुर निकाल लिया है और वह हमारे गुप्तप्रेम सम्बन्ध को जान गया है; तो उसने अपने प्रेमी (यार) को झटपट जगाकर उसे सारी बातें समझाकर
SR No.002364
Book TitleUpdeshmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherGuru Ramchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages444
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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