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________________ प्राक्कथन . संसार तेजी से बदलता जा रहा है। पुराने शुद्ध मूल्य बदलते जा रहे हैं, साधुता का स्थान विलासिता, प्रमादशीलता, आडम्बरपरायणता और आचारहीनता लेती जा रही है। ऐसे समय में पुराने शुद्ध मूल्यों की सुरक्षा न की जाय और गलत मूल्यों को ही बढ़ने दिया जाय तो देश पर ही नहीं, दुनिया पर संकट के काले बादल छा सकते हैं, मानव पशु से भी गया बीता, राक्षस और बर्बर बन सकता है। अत: पुराने शुद्ध मूल्यों की सुरक्षा और मानवजाति को विनाश और बुराइयों से रोकने के लिए यही आवश्यक है कि उनका प्रचार-प्रसार किया जाय, जनता के दिल-दिमाग में साधुता के उन मूल्यों की आवश्यकता और उपयोगिता की बात ठसायी जाय। इसी कारण मेरे मन में साधुता के शुद्ध मूल्यों के प्रतिपादक इस बहुमूल्य ग्रंथराज-'उपदेश-माला' के हिन्दीभाषा में अनुवाद करने और प्रकाशन कराने की प्रबल इच्छा जागृत हुयी। मैंने रह-रहकर सोचा कि सारा संसार आज विनिमय के आधार पर टिका तो है, पर साधुता न होने से उसमें स्वार्थ, हिंसा, झूठ, बेईमानी, दुराचार आदि बुराइयों के कीटाणु उसे स्थायी न रहने देंगे। और मैंने निश्चय कर लिया, इसका हिन्दी-भाषा में अनुवाद करने का। यद्यपि मैं हिन्दीभाषा का कोई सफल रचनाकार, अच्छा अनुवादक या सिद्धहस्त लेखक नहीं हूँ, फिर भी शांतमूर्ति आचार्यदेव श्रीमद् विजयसूरीश्वरजी महाराज तथा सौम्यमूर्ति आचार्यदेव श्रीमद् विजयपूर्णानन्दसूरीश्वरजी महाराज की असीम कृपा का फल है कि मैं अपने पूर्वोक्त निश्चय को असली रूप दे सका। साथ ही विद्वद्वर्य मुनिवर श्री नेमिचन्द्रजी महाराज ने उदारतापूर्वक इस पुस्तक का समग्ररूप से संशोधन करके मेरे उत्साह में वृद्धि की है; एतदर्थ मैं उनके प्रति कृतज्ञ हूँ। ___ इस संपूर्ण ग्रंथ में उत्तम साधुजीवन के मूलगुणों, उत्तरगुणों आदि का प्रतिपादन करने के साथ-साथ विविध युक्तियाँ, दृष्टांत, प्रेरणाप्रद कथाएँ और वैराग्यरस में सरोबार कर देने वाला शुभफलप्रदर्शक तर्क एवं अनुभव देकर साधुता के शुद्ध और ध्येयलक्षी मूल्यों का प्रतिपादन कूट-कूटकर किया गया है। सारे मानव-समाज का आदर्श शिरोमणि और परमश्रद्धेय साधु है। वही यदि अपनी - ii
SR No.002364
Book TitleUpdeshmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherGuru Ramchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages444
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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