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________________ श्री उपदेश माला गाथा ३३ जा सा, सा सा का दृष्टांत ___'जा सा, सा सा' का दृष्टांत वसंतपुर नगर में अनंगसेन नाम का एक सुनार रहता था। वह अत्यन्त स्त्री लंपट था। उस सुनार ने पाँच सौ स्त्रियों से शादी की थी। वे स्त्रियाँ बहुत रूपवती थी। अनंगसेन उन्हें कभी बाहर जाने नहीं देता था, जबर्दस्ती उन्हें घर में ही बंद रखता था। एक दिन वह सुनार अपने मित्र के यहाँ भोजन करने गया। उस समय सभी स्त्रियों ने विचार किया-"आज सुअवसर मिला है, अपना मनचाहा करने का।" सभी ने एकमत होकर स्नान, विलेपन, आभूषण, काजल, सिंदूर, तिलक आदि धारण कर अपने हाथ में शीशा लिया और बड़े गौर से अपना रूप निहारने लगीं। साथ ही वे परस्पर हंसने, तमाशा करने, गीत गाने और खेलने लगीं। क्योंकि हमेशा तो उनमें से जिसकी बारी होती, उसी को वह सुनार (पति) आभूषण आदि शृंगार करने देता था, अन्य को नहीं। इसीलिए आज अपनी इच्छा के अनुसार उन सबने मनमानी क्रीड़ा करनी शुरू की। इतने में ही सोनी अपने घर आया। उसने अपनी स्त्रियों की यह चेष्टा देखी तो उनमें से एक स्त्री को पकड़कर उसके मर्मस्थान पर दे मारा। इससे वह तत्काल मर गयी। यह देख अन्य स्त्रियों ने सोचा'इसने एक को कुमौत मारा है, शायद दूसरों को भी मारें। अतः क्यों न हम सब मिलकर इसी को ही मार डालें।' ऐसा निर्णयकर सभी ने अपने-अपने हाथ में लिया हुआ शीशा एक साथ जोर से स्वर्णकार के ऊपर फैका। शीशों के एक साथ प्रहार से स्वर्णकार वहीं ढेर हो गया। सभी स्त्रियों ने लोकनिन्दा होने के भय से उस मकान में आग लगा दी। आग की लपटें बढ़ जाने से काबू में न आयी। इससे वे सबकी सब उसी मकान में वहीं झुलसकर मर गथी। मरकर चोरपल्ली में चोर के रूप में उनका जन्म हुआ। प्रथम जो स्त्री मरी थी, उसने किसी गाँव में किसी सेठ के यहाँ पुत्र रूप में जन्म लिया, और स्वर्णकार के जीव ने उसी सेठ के घर पुत्री रूप में जन्म लिया। वह पूर्वजन्म के कामासक्ति के अभ्यास के कारण जन्मते ही अतिकामातुर होकर रुदन करती थी। एक दिन उसके भाई का हाथ उसकी योनि पर लग गया; इससे उसने तत्काल रोना बंद कर दिया। इस प्रकार उसे चुप रखने का उपाय मिल गया। अब जब भी वह रोती थी, तब हमेशा वह उसी तरह किया करता था। एक दिन उसके पिता ने उसे वैसा करते देख लिया। पिता ने उसे रोका, परंतु वह नहीं माना। फलतः उसे घर से निकाल दिया। वह चोरपल्ली में (जहाँ कि उसके पूर्वजन्म की सौतों ने जन्म लिया था) चला गया। वहाँ रहते-रहते वह उन ५०० - 75
SR No.002364
Book TitleUpdeshmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherGuru Ramchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages444
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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