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________________ साधना के शलाकापुरुष : गुरुदेव तुलसी देह - ममत्व का अल्पीकरण । कष्ट - सहिष्णुता का विकास। ध्यान की पूर्व भूमिका | शरीरगत तनावों से मुक्ति । रोग मुक्ति का सफल साधन । श्वास- क्रिया पर नियंत्रण । मांसपेशियों पर नियंत्रण | हड्डियों में लचीलापन। पर्याप्त ऑक्सीजन का ग्रहण । स्राव - परिवर्तन का अचूक उपाय । ताजगी और स्फूर्ति का अमोघ साधन । आध्यात्मिक पुरुष होने के कारण पूज्य गुरुदेव शरीर को पुष्ट करने के लिए नहीं, अपितु चेतना के ऊर्ध्वारोहण हेतु पिछले ४० वर्षों से प्रतिदिन योगासन एवं प्राणायाम का अभ्यास करते थे । वे इसे खुराक के रूप में स्वीकार करते थे । प्रातः प्रातराश करने में उन्हें इतना आनंद का अनुभव नहीं होता, जितना आसन करने में होता था। सन् १९९६ लाडनूं सुधर्मा सभा में लोगों को प्रतिदिन योगासन की प्रेरणा देने के लिए अपना अनुभव सुनाते हुए उन्होंने कहा- 'मैं जिस दिन आसन-प्राणायाम नहीं करता, लगता है उपवास हो गया है। मैं आसन आज भी बच्चे की भांति करता हूं। मेरा शरीर उतना ही लचीला एवं स्फूर्ति से भरा है, जितना एक बच्चे का होता है। योगासन के अभ्यास से ही मुझे सतत तारुण्य का अनुभव होता रहता है। योगासन में सातत्य नहीं रहता तो वे इतने फलदायी नहीं बन सकते इसलिए मैं भाई-बहिनों को प्रेरणा देना चाहता हूं कि शारीरिक, मानसिक एवं भावनात्मक स्वास्थ्य के लिए प्रतिदिन अनिवार्य रूप से योगासन करने चाहिए।' H H ५२ + पूज्य गुरुदेव व्यस्त कार्यक्रम में भी आसन-प्राणायाम के क्रम को तोड़ना नहीं चाहते थे और न ही इसके समय की कटौती करना चाहते थे । किसी कारणवश जिस दिन आसन-प्राणायाम का अभ्यास नहीं होता, उन्हें रिक्तता की अनुभूति होती थी । उनका अनुभव था कि भोज्य पदार्थों से शरीर में जो गरमी और सक्रियता आती है, वह स्थायी नहीं होती है पर
SR No.002362
Book TitleSadhna Ke Shalaka Purush Gurudev Tulsi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages372
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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